tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post3537668396226116793..comments2023-10-18T19:47:55.658+05:30Comments on हा र मो नि य म: विदर्भ के किसानों की शहादत और वोटतंत्रAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-58482862120667668112009-10-09T08:22:50.973+05:302009-10-09T08:22:50.973+05:30lekin ghuma-phirakar yahi kaha jata hai aur safal ...lekin ghuma-phirakar yahi kaha jata hai aur safal log yahi to karte rahte hainEk ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-48678107335804976182009-10-07T16:09:16.119+05:302009-10-07T16:09:16.119+05:30आत्मकेंद्रित होना हमारे समय का प्रमुख लक्षण है। पत...आत्मकेंद्रित होना हमारे समय का प्रमुख लक्षण है। पता नहीं क्यों सफलता के नुस्खे बताने वाली किसी किताब में अब तक साफ क्यों नहीं लिखा गया कि सफल होने के लिए लाशों को लांघने का अभ्यास करें।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-38032666064178885502009-10-07T09:17:52.847+05:302009-10-07T09:17:52.847+05:30अगर तुम्हारे घर के एक कमरे में लाश पड़ी हो,
तो क्...अगर तुम्हारे घर के एक कमरे में लाश पड़ी हो,<br /><br />तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो..<br /><br />अगर हां !... <br /><br />तो मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना....। ....logon ne sharminda hona chhod diya hai. ve kuchh sunna nahi chahteEk ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-4337783802298285252009-10-06T08:02:54.362+05:302009-10-06T08:02:54.362+05:30अभी कुछ ही दिनों पहले मेरे अपने शहर वर्धा में लंगो...अभी कुछ ही दिनों पहले मेरे अपने शहर वर्धा में लंगोटिया यारों, जो मुझसे ज्यादा ग्रासरूट के करीब हैं, से हुई बहस का लब्बोलुआब यह निकला कि हर अमीर अपनी काबिलियत से अमीर है और 'वाइस वर्सा'. पूँजी बाज़ार के इंद्रजाल से उपजे इस सरलीकृत ज्ञान से मैं पहली बार काँप सा गया. <br />नौकरीपेशा वर्ग बड़ी बेशर्मी के साथ किसानों की बदहाली के लिए उनकी अपनी काहिली को जिम्मेदार ठहराता है. याद होगा कि अभी-अभी एक मुख्यमंत्री ने यही बात बड़े 'कोल्ड-ब्लडेड' अंदाज़ में बयां की थी. मेरे बचपन में शरद जोशी की शेतकरी संघटना का विदर्भ में बड़ा ज़ोर था. 'भीक नको, हवे घामाचे दाम' अर्थात 'भीख नहीं, पसीने की कीमत चाहिए' के उनके नारे से दीवारें भरी होती थीं. पर यह संगठन भी जोशी जी के उजबक तरीकों और मनमाने फैसलों से, जिसमें भाजपा-शिवसेना से हाथ मिलाना शामिल है, अपना प्रभाव पूरी तरह खो चुका है. वैसे जोशी जी की 'स्वतंत्र भारत पार्टी' का ना-उम्मीदवार इस बार भी वर्धा विधानसभा क्षेत्र से मैदान में है.<br /><br />पुनश्च: अगली बार विदर्भ का दौरा हो तो बताइयेगा, मैं अपने घर का पता दे दूंगा. आप मेरे घर हो आयें तो अच्छा लगेगा!भारत भूषण तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/12706567132548135848noreply@blogger.com