tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post5894258267261866909..comments2023-10-18T19:47:55.658+05:30Comments on हा र मो नि य म: नक्सली हिंसा और भीष्म पितामह का उपदेश!Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-24971088306555629852009-11-28T01:39:58.760+05:302009-11-28T01:39:58.760+05:30देखिए कि कुछ लोगों ने माओवाद की गल्तियों को आधार ब...देखिए कि कुछ लोगों ने माओवाद की गल्तियों को आधार बनाकर पूरी दुनिया में आजतक हुई वामपंथी क्रांतियों को बदनाम करना शुरु कर दिया है. इस अभियान में सबसे बड़ा नाम अपूर्वानंद का है जो कुछ दिनों पहले 'जनसत्ता; नाम के अखबार मे फ़र्मा चुके हैं कि लेनिन से लेकर माओ तक, सभी हत्यारे थे और 'लोकतंत्र-विरोधी'भी.अपूर्वानंद भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का सदस्य रह चुका है. दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी का प्रोफ़ेसर है और तमाम सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं में भारी दखल रखता है.इस तरह के तत्व बड़े आमफ़हम लहज़े में कांग्रेस, चिदम्बरम, अमरीका से ज़्यादा बड़ा काम कर रहे हैं किसी भी तरह के बदलाव और पूम्जीवाद के खिलाफ़ आम लोगों की लड़ाइयों को बदनाम करने का. इनपर नज़र रखे. आपका सत्येंद्रAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-79051547844137021302009-11-14T22:04:16.205+05:302009-11-14T22:04:16.205+05:30अब तो साफ़ है कि नक्सलवाद से लडने के नाम पर सरकारें...अब तो साफ़ है कि नक्सलवाद से लडने के नाम पर सरकारें जंगलों और उनमें उपस्थित अमूल्य खनिज पदार्थों की खुली लूट के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों की राह साफ़ करना चाहती है। सदियों से उत्पीडित जन अगर अपने ख़िलाफ़ अन्याय के चरम को चुपचाप बर्दाश्त करने की जगह हथियार उठा लेते हैं तो उनको कुचल देना आसान होता है…पर यह समस्या का समाधान नहीं होता है।<br /><br />मार्क्सवाद को गाली देने वाले लोग जब यह तथ्य भुला देते हैं कि एक दंगे में उतने लोग मारे गये थे जितने अब तक की नक्सली हिंसा में नहीं मारे गये, देश भर में हिंदू आतंकवादी अपनी साजिशें खुलेआम कर रहे हैं, नयी आर्थिक नीतियों की मार से लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हैं, रोज़गार सिकुड रहे हैं, आम आदमी तबाहो बरबाद हो रहा है तो उनकी पक्षधरता स्पष्ट हो जाती है।<br /><br />यह बदहाली विद्रोह में बदलेगी ही। कोई पहल करेगा इन कारणों को दूर करने की?Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-26408982785327163652009-11-05T06:41:22.320+05:302009-11-05T06:41:22.320+05:30नक्सलवादी आतंकवादियों से देश की विकराल समस्याओं के...नक्सलवादी आतंकवादियों से देश की विकराल समस्याओं के समाधान देखना बेमानी है। क्स्षेत्रवाल समस्यायें अलग हैं और उनके समाधान के रास्ते भी अलग। बस्तर जैसे क्षेत्र में नक्सलवाद इस लिये नहीं पनपा कि वहाँ इसकी आवश्यकता थी बल्कि इस लिये कि वहाँ के जंगल इन आतताईयों/गुंडा तत्वों/ आतंकवादियों की पनाहगाह बनने के लिये उपयुक्त हैं। <br /><br />नक्सलियों को बडी समस्या बनने से पहले कोका और कुचला जाना आवश्यक है। लेकिन उनकी सक्रिय बी-टीम यानी कि तथाकथित बुद्दि(?)जीवी-मार्क्सवादी अपने कु-प्रचार से उन्हे रॉबिनहुड बना कर ही दम लेगी।राजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-90014067263099651972009-11-04T21:48:15.123+05:302009-11-04T21:48:15.123+05:30आदिवासियों को ढाल बनाकर लड़ने वाले माओवादियों से य...आदिवासियों को ढाल बनाकर लड़ने वाले माओवादियों से ये आदिवासी सरकारी अफसरों से ज़्यादा क्यों लगाव रखते हैं, इसके लिए इनके बीच जाकर इनके ज़मीनी हालात देखना ज़रूरी हैं। ये माओवादी छोटे छोटे विवादों का निपटारा करने से लेकर दबंगों तक से मुचौटा लेते हैं और आदिवासियों का दिल जीत लेते हैं। लेकिन, माओवाद का सबब आदिवासियों के लिए बस इतना ही नहीं है। अब वो रॉबिनहुड नहीं रह गए हैं, वो धीरे धीरे खालिस्तान बनाने जैसे किसी सपने के पालनहार बनने लगे हैं। असली खामी इस पूरे आंदोलन की यही है। अगर ये लोग सिस्टम में रहकर सिस्टम का विरोध करें तो आदिवासी बहुल इलाकों की सूरत अब भी बदल सकती है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16312720514784919531noreply@blogger.com