tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post3180439056923630655..comments2023-10-18T19:47:55.658+05:30Comments on हा र मो नि य म: अश्लीलता हुसैन में नहीं, आपकी आंख में है पार्टनर!Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-50836956162495893552010-08-16T11:53:54.221+05:302010-08-16T11:53:54.221+05:30jaisi karni vaisi bharni.krishna bhagvan ne kaha h...jaisi karni vaisi bharni.krishna bhagvan ne kaha hai (karm pradhan hai)dhiresh pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-5194835637757792902010-03-09T15:35:34.365+05:302010-03-09T15:35:34.365+05:30आदरणीय पंकज जी,
मैं पढ़-पढ़ कर इतना जान सका हूँ की...आदरणीय पंकज जी,<br />मैं पढ़-पढ़ कर इतना जान सका हूँ की फिदा हूसैन बडे ही नहीं अद्भुत चित्रकार हैं, इसलिये उनकी कला प्रश्न लगाना मूर्खता होगी। हूसैन प्रकरण निसंदेह राजनीतिक प्रकरण है इसका कला, संस्कृति या सहिष्णुता से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे ही चित्र किसी आम सडकछाप चित्रकार ने बनाये हों (और निश्चित बनाते होंगे)तो शायद कोई शोर-सराबा नहीं होगा। बहुत से अश्लील और लज्जाजनक कवित्त हम सुनते ही रहते हैं लेकिन यही कोई बड़ा कवि कहदे तो सचमुच लानत-मलामत का मामला बनता है। एक आम हिन्दु सरस्वती का नंगा चित्र देखकर मुंह मोड लेगा या उसे नष्ट कर देगा(यदि उसकी की कला की समझ नहीं है, कोई कलाकार क्या करेगा ! मैं नहीं जानता) लेकिन इस पर दंगा-फसाद राजनीति या कट्टरवाद ही करता है। मुझे सुरों का ज्ञान नहीं है लेकिन कोई एक गीत तो मैं बहुत प्रयास से सीख ही सकता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं पेंटिग का क ख ग सीख पाऊँ या नहीं लेकिन इतने प्रसिद्ध चित्र की खूबियों के बारे में जानना चाहता हूँ। चित्र की रेखाओं को लेकर कोई विशेष बात जरूर होगी, गुप्तांग की रेखाओं की कलात्मकता, चित्र का संदेश (खासकर नग्नता का) आखिर कुछ तो उस कोटि का होगा जिस कोटि के हूसैन हैं। क्या मैं केवल एक चित्र को भी नहीं समझ सकूँगा ? तो कृपया अन्य विवरणों में जाने से पहले कला के साथ सबसे पहला न्याय यह है कि उसका महत्त्व निरूपण किया जाये। उस चित्र की समीक्षा की जाये तो लोगों को समझ आयेगा कि इतनी उत्कृष्ट कृति को वे क्या समझ रहे हैं! चित्र पर ऐतराज यकीनन उन लोगों द्वारा किया जा रहा है जो चित्रकला की abc नहीं जानते लेकिन लगता है जो उसकी ओर से बचाव कर रहे हैं वे भी चित्रकला के आलोचक नहीं है, चित्रकार नहीं है, रंगों, कूचियों, रेखाओं के बारे कुछ बहस नहीं कर सकते। आप चित्र की समीक्षा कीजिये, इसकी कलागत विशेषताओं, इसके संदेश के विषय में लिखिये। माना की लोग गलत हैं लेकिन उन्हें सही होने का अवसर तो दिया जाये। <br /><br />हाल कुछ ऐसा है-<br />कभी-कभी अपने दिल को हमने यूँ बहलाया है<br />जिन बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है<br /><br />मैं ने आपके आर्टिकल का कुछ लोगों से बातचीत में उपयोग किया तो कुछ अज़ीब से तर्क सुनने पड़े।प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-50773569609933382842010-03-09T00:46:37.095+05:302010-03-09T00:46:37.095+05:30bandhuvar, yah nischit taur par kah sakta hu ki aa...bandhuvar, yah nischit taur par kah sakta hu ki aapke ekdam sadha hua aur tarkik likha hai, halanki samrendra ji ki kathan apani jagah jayaj rahe.<br /><br />pata nahi ham dharm aur kala in dono chashmo ko alag kab kar payenge....aur in dono ke bich... aap to jante hi hainSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-10347968770321392742010-03-08T20:44:00.221+05:302010-03-08T20:44:00.221+05:30पंकज भाई,
बधाई। बहुत सधा हुआ और तार्किक लेखन। सबन...पंकज भाई, <br />बधाई। बहुत सधा हुआ और तार्किक लेखन। सबने बहुत कुछ कहा। आपसे सहमत हूं। टिप्पणियों के जवाब में भी बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया। दो वाक्यांश खास पसंद आए उन्हें कोट कर रहा हूं। <br />1. दरअसल, भावनावादियों को अपनी संस्कृति और इतिहास का उदार पक्ष जहर जैसा लगता है। <br />2.कला समीक्षा की जिम्मेदारी भीड़ को नहीं सौंपी जा सकती। इसलिए भारतीय परंपरा 'अरिसकेषु काव्य निवेदनम्' से बरजती है।<br /><br />जैजैअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-2461941796535072922010-03-06T22:29:39.940+05:302010-03-06T22:29:39.940+05:30रंगनाथ भाई, तस्लीमा प्रकरण में यूपीए सरकार को बख्श...रंगनाथ भाई, तस्लीमा प्रकरण में यूपीए सरकार को बख्शने का तो सवाल ही नहीं है। ध्यान दें, मैंने आखिरी से पहले वाले पैराग्राफ में यूपीए सरकार पर टिप्पणी की है। लेकिन कांग्रेस से इस मामले में उम्मीद भी कहां थी। उम्मीद तो वामपंथियों से थी जो उन्होंने बंगाल की खाड़ी में डुबो दी। .. <br />@कुमार विनोद...हुसैन ने उम्र की दुहाई देकर देश नहीं छोड़ा। वे दस साल तक यहीं रहकर गालियां और धमकियां झेलते रहे। अदालत भी पहुंचे थे। लेकिन 2006 में जब वे 90 साल के हो रहे थे तो हार कर विदेश चले गए...तमाम देशों में भटकते रहने के बाद वे कतर पहुंचे जहां उन्हें चित्रकारी का एक प्रोजेक्ट मिला। उन्होंने बेहतरीन काम किया तो वहां की सरकार ने उन्हें नागरिकता देने का प्रस्ताव किया। ध्यान दें, उन्होंने इसके लिए आवेदन नहीं किया था। एक बार 95 साल की उम्र के बारे में गंभीरता से सोच कर देखिए... हुसैन की तकलीफ भी समझ सकेंगे।pankaj srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10306271251260997857noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-3865570521706108062010-03-06T21:31:38.899+05:302010-03-06T21:31:38.899+05:30यह भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सफलता है कि भारत क...यह भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सफलता है कि भारत का मध्यवर्ग बाबरी विध्वंस के बाद से कट्टर हुआ है...लेकिन देश के राजनैतिक,सांस्कृतिक और सामाजिक ढाँचे की चरमराहट इसमें सुनी जा सकती है...कला और साहित्य की विषयवस्तु का निर्धारण पहले से बी जे पी और उसी तरह के दलों से करा कर काम किया जाना चाहिए... हुसैन के सैकड़ों अविवादित चित्रों के स्तर और सौंदर्य को क्यों देखा जाए..देखा भी जाए तो कैसे समझा जाये.. इनके आका बाल ठाकरे को बॉम्बे की जनता ने आईना दिखा दिया है...एक दो बार और ये मसखरे केन्द्र से दूर रह जाएँ इनके नकली दाँत घास खाने के लायक भी नहीं रह जाएँगे...ये तर्क की नहीं पिटाई की भाषा समझते हैं...इस वैलेंटाइन पर छत्तीसगढ़ में इनकी सारेराह पिटाई हुई है...अगले साल कुछ और जगहों पर यह होगा ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए...ज़्यादातर लोग भारत की तुलना पाकिस्तान और अरब के इस्लामिक देशों से कर के भारत के उदार होने पर नाराज़गी भी ज़ाहिर करते हैं.. उन्हें यूरोप के पुनर्जागरण और वहाँ की सांस्कृतिक उदारता से सबक नहीं लेना है...भारत भी आँख निकालने, हाथ काटने, पत्थर मरने की सज़ा वाला देश बने...इनकी यही कोशिश है...<br />एक मज़बूत इरादे से लिखे गये लेख के लिए सलाम.<br /><br />महेश छत्तीसगढ़Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-36229189816735182762010-03-06T21:15:37.630+05:302010-03-06T21:15:37.630+05:30बेशक गालियों का कोई जवाब नहीं होता, लेकिन पंकज जी,...बेशक गालियों का कोई जवाब नहीं होता, लेकिन पंकज जी, कला सिर्फ रंगों और रेखाओं का माध्यम नहीं होता, इसके पीछे एक भावना होती है,जो रंगो और रेखाओं की तरह स्पष्ट होनी चाहिए. अगर भावना अदृश्य है, तो भंगिमा भी नंगी लगती है. जब सरस्वती के चित्र, भारतमाता के चित्र पर विवाद उठा, तो भावना हुसैन साहब को ही साफ करनी चाहिए, न कि उम्र की दुहाई देते हुए देश छोड़ दें. चित्र कब के हैं इससे फर्क नहीं पड़ता, उन चित्रों के पीछे आपकी कौन सी कलाकारी है, इस बात से फर्क पड़ता है. समरेन्द्र संभवतः इसी कलाकारी और कला की इसी आजादी की तरफ इशारा कर रहे हैं...<br />कुछ और दलीले हैं इस लिंक पर, चाहें तो पढ़ लें- <br />http://kyascenehai.blogspot.com/2010/03/blog-post_06.htmlकुमार विनोदhttps://www.blogger.com/profile/03558571990487760607noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-2588250571238382982010-03-06T19:32:29.065+05:302010-03-06T19:32:29.065+05:30oh ek to seedhe khaki kachhadhari hain aur kuchh y...oh ek to seedhe khaki kachhadhari hain aur kuchh yh kaam aad lekar karte hain. moorkhon aur dhoorton se bahas karna fijool hai Pankaj bhaiiDhireshhttp://ek-ziddi-dhun.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-91358471010149708242010-03-06T17:51:29.837+05:302010-03-06T17:51:29.837+05:30. .पंकज जी
आपका लेख पढ़ा. बहुत अच्छ.... .पंकज जी<br /> आपका लेख पढ़ा. बहुत अच्छा है. सच है.<br />टिप्पणियाँ भी पढ़ीं. मजा आया. एक बात मैं आज तक समझ नहीं पाया कि लोग कट्टर कैसे हो जाते हैं ?<br /> जो लोग कहते हैं कि मुहम्मद साहब का नग्न चित्र हुसैन ने क्यों नहीं बनाया , उन्हें सोचना चाहिए कि दरअसल यह काम उन्होंने अपने विरोधियों के लिए छोड़ रखा था. अफसोस, उनमें कोई कलाकार नहीं , लट्ठमार हैं.<br /> matukmatukjulihttps://www.blogger.com/profile/08188417915951811081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-14633048320375475872010-03-06T14:35:16.360+05:302010-03-06T14:35:16.360+05:30पंकज श्रीवास्तव जी इस मुद्दे पर सबसे संतुलित,सटीक ...पंकज श्रीवास्तव जी इस मुद्दे पर सबसे संतुलित,सटीक और विचारवान आलेख प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद। दंगा निर्माण एवं उत्पाद उद्योग की अभियांत्रिकी की तरफ आपने ध्यान खींचने की कोशिश की इसके लिए आपका कोटी-कोटी आभार। भावनाएं भड़कती हैं या भड़कायी जाती हैं इस लाइन पर बहस की यहां कोई गंुजाइश नहीं दिखती। यहां तो खण्डन-मण्डन ही ईश वंदन का स्थान ले चुका है। इस लेख में ऐसा बहुत कुछ है जिसके लिए कह सकता हूं कि आपने मेरे मुंह की बात छीन ली। लेकिन फिर भी कुछ मुंह में रह गयी है। उसे कहे देता हूं। तसलीमा के मामले में आपने सिर्फ पश्चिम बंगाल उर्फ सीपीएम का जिक्र किया है। जबकि हमारे ख्याल से वहां बांग्लादेश और भारत सरकार का भी उल्लेख जरूरी होता। तसलीमा कोलकाता में नहीं रह पाईं तो वो दिल्ली में भी नहीं रह पाईं। जितने दिन रही भीं नजरबंद रहीं। <br /><br />कुछ लोगों को यह लेख समझ में नहीं आ रहा है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। जिन्हें अंकज्ञान न हो उसे गणित के सामान्यतम सिद्धांत भी नहीं समझाए जा सकते। जिन्हें अक्षरज्ञान न हो उन्हें प्राइमरी की बालपोथी भी नहीं समझाई जा सकती।<br /><br />उसी तरह सहिष्णुता और संस्कृति के कखगघ से भी वंचित लोगों को समझाना लगभग नामुमकिन है। हुसैन के विरोधी तसलीमा और रश्दी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझते हैं। तसलीमा और रश्दी के विरोधी हुसैन की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझते हैं। इससे स्पष्ट है दोनों धार्मिक असहिष्णुता के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते। उनकी सहमति-असहमति का आधार उनका धार्मिक कट्टरपन है। न कि लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान।<br /><br />एक तीसरी प्रजाती भी है। जो इन दोनों मतांधों को समझाते हैं कि देखो तुम लोग सब कुछ करो लेकिन खुद में इतना भी मत लड़ो कि दोनों का भेद खुल जाए। दुनिया बहुत बड़ी है। मिलकर चरो-खाओ। दोनों के लिए पर्याप्त है। ऐसे लोग ऐसे अवसरों पर शांति और संयम की अपील के साथ नमुदार होते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की अपील के निशाने पर दंगाई नहीं होते। वो सृजनकार होते हैं जिनके छवि की लाश पर दंगाई नाच रहे होते हैं।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-9287810223698823952010-03-05T18:10:12.201+05:302010-03-05T18:10:12.201+05:30वैसे अब तक जो दंगे हुए हैं उनमें से कितनों में कला...वैसे अब तक जो दंगे हुए हैं उनमें से कितनों में कलाकारों/लेखकों/बुद्धिजीवियों का हाथ था?Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-89723560614720522242010-03-05T15:01:21.486+05:302010-03-05T15:01:21.486+05:30गालियों का जवाब देना मैं जरूरी नहीं समझता, क्योंकि...गालियों का जवाब देना मैं जरूरी नहीं समझता, क्योंकि मैं उन्हें स्वीकार ही नहीं करता हूं, कि लौटाना पड़े। फिर गालियां तथ्यों के आधार पर तर्क करने की क्षमता के अभाव का दयनीय प्रदर्शन भी होती हैं। लेकिन समरेंद्र जी ने कुछ अहम बातें उठाई हैं जिन पर बात की जानी चाहिए।<br /><br />पहली बात----वाल्तेयर के नाम से मैंने जो कोटेशन दिया है वो इतिहास की सैकड़ों किताबों में यूं ही दर्ज है। लेकिन मैं इस संभावना से इंकार नहीं करता कि कोटेशन वाल्तेयर के जीवनीकार का हो, जैसा समरेंद्र कह रहे हैं। मैं उनकी सजगता को सलाम करता हूं। पर इससे इस कोटेशन का महत्व कम नहीं हो जाता। सैकड़ों साल से ये कोटेशन लोकतांत्रिक समाज की कसौटी बना हुआ है। डा.लोहिया भी इसका खूब इस्तेमाल करते थे। वैसे, इवलिन बिट्राइस हॉल इस फ्रेज की 'रचना" कर ही नहीं सकते थे, अगर वाल्तेयर के जीवन संघर्ष का ऐसा निचोड़ न होता। <br /><br />दूसरी बात-समरेंद्र ने ठीक कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी हर समाज में अलग-अलग होती है। इसीलिए भारतीय समाज में मिली अभिव्यक्ति की आजादी को कतर के माहौल से तुलना करना बेमानी है। लेकिन समरेंद्र का निष्कर्ष अजब है। वे कह रहे हैं कि कालिदास वगैरह के समय मुसलमान नहीं थे। यानी मुसलमानों के आते ही परंपरा और इतिहास से मिली अभिव्यक्ति की आजादी बेमानी हो जाती है। वे हुसैन को लेकर हो रही बहस को हिंदू-मुसलमान के खांचे में रखना चाहते हैं। उन्हें देखना चाहिए कि न्यूज चैनलों पर मौलानाओं की बड़ी जमात भी इस मुद्दे पर हुसैन को वैसे ही गलत ठहरा रही है जैसे कि कोई आरएसएस विचारक। इसलिए ये लड़ाई भारतीय परंपरा में उदारता की धारा के पक्षधरों और उसे उलटने वालों के बीच है। खुजराहो के मंदिर निर्माण करने वाले समाज में भी जन जीवन वैसा ही नहीं था जैसा मूर्तियों में दर्ज है। लेकिन मूर्तियां उस समाज के कलाबोध को जरूर दर्शाती हैं। <br /><br />तीसरी बात-समरेंद्र कह रहे हैं कि गुप्त काल जैसी आजादी दे दी गई तो दंगे होंगे और हमारे जैसे बुद्धिजीवी ताली बजाएंगे। तो बंधु, पहली बात तो ये कि अभिव्यक्ति की आजादी किसी की कृपा से नहीं मिली है। गुप्त काल में आजादी भले ही उस समय के राजा-महाराजाओं की कृपा की मोहताज रही हो, आधुनिक भारत में ये संवैधानिक अधिकार है। माफ कीजीएगा, पाकिस्तान चाहे धर्म के नाम पर बना हो, लेकिन आधुनिक हिंदुस्तान के निर्माताओं ने उसी वक्त साफ कर दिया था कि उनका राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष रहेगा (समरेंद्र जी ये तथ्य मत सुधारियेगा कि धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान में आपातकाल के समय जोड़ा गया, जैसे समाजवाद, क्योंकि ये पूरे स्वतंत्रता आंदोलन की मूल भावना से जुड़ा था। और ये भी सही है कि शासकवर्ग ने इस शब्द का माखौल बनाकर रखा है,,,, )। .....समरेंद्र जी का ये डर भी बेमानी है कि हुसैन जैसे लोगों की वजह से सियासतां करोडों लोगों को दंगों की आग में झोंक देंगे। सियासतदानों के पास बहानों की कमी नहीं है। वे लगातार ये कोशिश करते भी हैं, लेकिन जनता दो-चार दिन से ज्यादा उनके झांसे में नहीं रहती। इसलिए देश की मूल प्रकृति पर भरोसा कीजिए।<br /><br />मेरी बात--मुझे अफसोस है कि मेरे मूल प्रश्न पर समरेंद्र या किसी ने गौर नहीं फरमाया। सब लोग ये मान रहे हैं कि हुसैन ने सरस्वती का नग्न चित्र बनाया। मेरी सबसे बड़ी आपत्ति इसी पर है। कला समीक्षा की जिम्मेदारी भीड़ को नहीं सौंपी जा सकती। इसलिए भारतीय परंपरा 'अरिसकेषु काव्य निवेदनम्' से बरजती है।pankaj srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10306271251260997857noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-67949914084554000732010-03-05T13:37:39.288+05:302010-03-05T13:37:39.288+05:30क्या हुसैन हुसैन किये हुए हैं .... ये कहिये कि सच...क्या हुसैन हुसैन किये हुए हैं .... ये कहिये कि सच नहीं कहेंगे क्योंकि बहुत बड़े धर्म निरपेक्ष होने का स्वांग करना आपके लिए शायद पहले ज़रूरी है !प्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-51997336486468299702010-03-05T13:23:21.652+05:302010-03-05T13:23:21.652+05:30Post Lekhak ki Pahchaan
http://www.blogger.com/pr...Post Lekhak ki Pahchaan <br />http://www.blogger.com/profile/10306271251260997857<br /><br />Sandigdh hai.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-71759067359902401612010-03-05T13:19:16.654+05:302010-03-05T13:19:16.654+05:30एक विकृत मानसिकता वाला आदमी कुछ भी लिख बना सकता है...एक विकृत मानसिकता वाला आदमी कुछ भी लिख बना सकता है. आप जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते हैं वो आने वाले झगड़े फसाद का बीज है. हुसैन को किसने अधिकार दिया की इस धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक फसाद उकसाने के लिए, किसी ख़ास धर्म को निशाना बना कर चित्रकारी करे. <br /><br />फ़िदा हुसैन सीधे सीधे मानवता का दुश्मन है. हाँ मैं मानता हूँ, यहाँ घटिया राजनीति करने वालों की भी फौज है. आप जैसे कलम घिस्सू को सेलेब्रिटियों का दुःख खूब नज़र आता है.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-90138339628475517832010-03-05T12:51:05.683+05:302010-03-05T12:51:05.683+05:30पहली बात - जो कोटेशन आपने आखिरी में लिखा है वह कोट...पहली बात - जो कोटेशन आपने आखिरी में लिखा है वह कोटेशन वोल्टेयर का नहीं है। वह कोटेशन इविलिन बिट्राइस हॉल का है। जिसकी रचना उन्होंने वोल्टेयर की जीवनी लिखते वक्त की थी और अपने इस मशहूर फ्रेज को वोल्टेयर को समर्पित किया था। इस तथ्यात्मक भूल को सुधार लें। <br /><br />दूसरी बात - अभिव्यक्ति की आज़ादी हर समाज में अलग-अलग होती है। जिस आज़ादी की बात आप भारतीय संदर्भ में कर रहे हैं और वह फिलहाल मुमकिन नहीं। आप जिन मूर्तियों और रचनाओं का उदाहरण दे रहे वो कब की हैं और उस समय भारतीय समाज कैसा था इसे ध्यान में रखना होगा। कालीदास 5वीं शताब्दी काल के हैं। उस वक़्त भारत में मुसलमान नहीं आए थे और उस वक़्त टकराव दूसरे मुद्दों को लेकर होता था। और उस टकराव का हिंसक इतिहास इस समाज में मौजूद है। खजुराहो का निर्माण के वक्त भी भारतीय समाज का ढांचा अलग था। <br /><br />तीसरी बात - आज हमारे देश में दो बड़े धर्म हैं। हिंदू और मुसलमान। देश का विभाजन धर्म के आधार पर हो चुका है। अनेक बड़े धार्मिक दंगें हो चुके हैं। हज़ारों लोग उन दंगों में मारे गए हैं। आज आपने खजुराहो काल और गुप्ता काल की आज़ादी दे दी तो आप जैसे बुद्धिजीवियों और हुसैन जैसे चित्रकारों की वजह से क्रूर सियासतदान लाखों-करोड़ों लोगों की बलि चढ़ा देंगे। और यकीन मानिए आप और हम जैसे लोग बंद कमरों में बैठ कर तालियां बजाएंगे। इससे अधिक कुछ भी करने की औकात हममे नहीं हैं।समरेंद्रhttps://www.blogger.com/profile/07666323462491120829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-85022656413513047322010-03-05T11:28:53.909+05:302010-03-05T11:28:53.909+05:30जय भूसा! जय भारत!
जय भगवा सुतली!जय भूसा! जय भारत! <br /><br />जय भगवा सुतली!Ashok Pandehttps://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-813503491013521312010-03-04T22:48:33.274+05:302010-03-04T22:48:33.274+05:30सही कह रहे हैं जनाब!!!!!!!!!!!!
हम हिन्दुओं की आँख...सही कह रहे हैं जनाब!!!!!!!!!!!!<br />हम हिन्दुओं की आँखें ही खराब हैं. अपने देवी देवताओं को नंगा बना तो सकते हैं पर किसी और के द्वारा नंगा बना देख नहीं सकते. भगवान् के चित्र हम हिन्दुओं के यहाँ नंगे ही तो होते हैं.<br />चलिए हुसैन की बात करें. गणेश के सर पर सवार लक्ष्मी किस तरह का प्रतीक है? सरस्वती का रेखांकन जैसा बना है वैसा हुसैन ने अपनी अम्मी का नहीं बनाया?<br />कहनीं पढ़ा था की हुसैन ने अपनी माँ का चेहरा नहीं देखा इस कारण उनके चित्रों में चेहरा नहीं होता है. चलिए मान लेते हैं पर उनके मुहम्मद साहब के तो चेहरा है और हुसैन ने उसको देखा भी होगा तो वे उसका चेहरा क्यों नहीं बनाते?<br />अब एक सवाल आपसे, की आपके घर में कमरों में किवाड़ हैं या नहीं? मतलब आपकी नज़रें पाक साफ़ हैं तो घर में सब काम (समझ रहे हैं न सभी काम!!!!) खुले आम होते होंगे? महिलाओं के, पुरुषों के ननाहे, कपडे बदलने से लेकर रात के पति-पत्नी के प्रेमालाप????<br />कृपया अन्यथा न लें..............ये भी मन के, विचारों के पाक साफ़ होने पर साफ़ दिखेगा.<br /><b>जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड</b>राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगरhttps://www.blogger.com/profile/16515288486352839137noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-10230211380078262072010-03-04T22:09:07.743+05:302010-03-04T22:09:07.743+05:30हमारी सनातन संस्कृति में वैचारिक खुलेपन, विरोधियों...हमारी सनातन संस्कृति में वैचारिक खुलेपन, विरोधियों से शांत भाव से शास्त्रार्थ और श्लील-अश्लील के चक्करों को लांघ कर किसी भी सीमा तक जाकर विचारों की अभिव्यक्ति और विश्लेषण के सुदीर्घ परंपरा रही है। इस परंपरा को अपना बंधुआ बनाने की सांप्रदायिक, कट्टर, रक्त पिपासुओं ने हाईजैक करने की हर काल में कोशिश पर कभी कामयाब नहीं हो पाए। बात उसी परंपरा को जीवित रखने और आधुनिक समय के साथ उसका तालमेल बिठाने की हो रही है ताकि उन कुंठाओं और गुत्थियों को सुलझाया जा सके जिन्हें हिंदू, मां-बहन, अश्लीलता वगैरा के कपट भावनात्मक गुबार के आगे ढक दिया जाता रहा है। यह लोकतांत्रिक खुलापन हमारी शक्ति है कमजोरी नहीं।<br />पता नहीं भाई लोग पैगंबर समेत इस्लामी आस्था के केंद्रीय व्यक्तित्वों को नंगा देखने के लिए इतने आक्रामक ढंग से आतुर किसके (?) असर में हैं। <br />मेरा मानना है कि आदमी की बेहतरी के लिए इस्लाम को भी ज्यादा खुला और डेमोक्रेटिक होना चाहिए जैसा कि कुछ देशों में हुआ है। लेकिन भारत में ऐसा आपके कुतर्कों और प्रतिहिंसा से भरी इच्छा से नहीं होने वाला। उसके लिए पहल उस धर्म को मानने वाला मुसलमान ही करेगा। कर भी रहा है। उसे जरा गौर से देखिए और प्रमोट कीजिए।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-69722715587491019792010-03-04T18:23:50.648+05:302010-03-04T18:23:50.648+05:30हुसैन साहब को सौ खून माफ़ . हां हम अश्लील मान्सिकत...हुसैन साहब को सौ खून माफ़ . हां हम अश्लील मान्सिकता को ढोते है .वैसे सन्जय भाई के साथ मे भी कलमा पढ लून्गाdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-62711621156812097762010-03-04T18:21:54.971+05:302010-03-04T18:21:54.971+05:30niceniceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-20736264984045534362010-03-04T17:52:03.701+05:302010-03-04T17:52:03.701+05:30गरीब भारतीयों की औकात मे नहीं था हुसैन के चित्र खर...गरीब भारतीयों की औकात मे नहीं था हुसैन के चित्र खरीद कर देखना और जिनके बेडरूमों के लिये वो तस्वीरे बनाता था वो तो नंगा ही देखते हैं। उसकी अस्लियत तो बाद में बाहर आयी और जब आयी तब हंगामा हुआ इस लिये इस तर्क का मतलब नहीं कि तस्वीरे कब बनीं। <br /><br />हुसैन पर कब हमला हुआ? उसे अदालत ले जाया गया और भारत की कानून व्यवस्था पर उसे भरोसा होना ही चाहिये था। अजी साहब आपको भी होना चाहिये था? <br /><br />स्वामि दयानंद सरस्वति नें असाधारण संघर्ष किया है कृपया उनके बारे में और पढें, उन्हे हुसैन की लक्जरी प्राप्त नहीं थी न ही उन्हें कुरीतियों का विरोध करने के लिये नग्नता प्रसारित करने की आवश्यकता पडी थी। दयानंद सरस्वती और हुसैन की तुलना हास्यास्पद है। <br /><br />लोकतंत्र में विरोध की आजादी भी है। हुसैन की अभिव्यक्ति ही अंतिम सत्य नहीं है उसके खिलाफ संवैधानिक कदम उठाना भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और इसका हक हर भारतीय को है। हुसैन की देश भक्ति तो कतर की नागरिकता लेते ही प्रामाणित हो गयी अब उस विदेशी के समर्थन का नाहक हल्ला किस लिये?niteshhttps://www.blogger.com/profile/11079432946519251279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-82325145824136789842010-03-04T17:48:33.672+05:302010-03-04T17:48:33.672+05:30@ बैगाणी साहब !
घटिया लेखो को भाव ही क्यों दिया जा...@ बैगाणी साहब !<br />घटिया लेखो को भाव ही क्यों दिया जाये ?पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-76663885163125135622010-03-04T17:13:50.300+05:302010-03-04T17:13:50.300+05:30भाई जान कतर में मोहम्मद को नंगा चित्रित कर दे और अ...भाई जान कतर में मोहम्मद को नंगा चित्रित कर दे और अभिव्यक्ति की आजादी साबित कर दे, खूदा कसम अपन इस्लाम कबूल कर लेंगे.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-48171264902816165912010-03-04T17:12:10.371+05:302010-03-04T17:12:10.371+05:30अपन तो अज्ञानी है क्या जाने आपने कहा वो भी ठीक और ...अपन तो अज्ञानी है क्या जाने आपने कहा वो भी ठीक और यह मोहतरमा जिन्हे भारत से निकाल बाहर किया गया और अभिव्यक्ति की आजादी पता नहीं कहाँ गई, तस्लिमाजी ने कहा वो भी ठीक. आप मुलायजा फरमाएं,<br /><br /><br />तस्लीमा उवाच: हिंदुत्व के प्रति अविश्वास के चलते ही उन्होंने लक्ष्मी और सरस्वती को नंगा चित्रित किया है! ...क्या वे मोहम्मद को नंगा चित्रित कर सकते हैं? मुझे यकीन है, नहीं कर सकते।<br />हुसेन भी उन्हीं धार्मिक लोगों की तरह हैं जो अपने धर्म में तो विश्वास रखते हैं, पर दूसरे लोगों के उनके धर्मों में विश्वास की निंदा करते हैं।संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.com