tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post6453612677856693883..comments2023-10-18T19:47:55.658+05:30Comments on हा र मो नि य म: मारो माओवादियों को..Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-82507338507983774122010-04-23T15:10:12.901+05:302010-04-23T15:10:12.901+05:30आदरणीय,
आपकी दूसरी टिप्पणी भ्रम का पुलिंदा है पहले...आदरणीय,<br />आपकी दूसरी टिप्पणी भ्रम का पुलिंदा है पहले अपने विचारों में कुछ स्थिर होइये फिर किसी बहस में हस्तक्षेप कीजिये बिना उन शब्दों के जो आपने पहले टिप्पणी में प्रयोग किये हैं। पढ़ने-लिखने के बाद उसे विवेक पर तौला भी कीजिये।<br />गाँधी, मार्क्स और माओ को इसलिये पढ़ा जाता है ताकि मनुष्य को समझा जा सके। और आपको जो पक्का यक़ीन है उसके आधार पर मुझे भी पक्का यकीन है कि इतना भ्रमित व्यक्ति कोई मार्क्सवादी ही हो सकता है।प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-35759074547678234182010-04-23T14:28:25.824+05:302010-04-23T14:28:25.824+05:30भाई जो रास्ता दंडकाराण्य में अपनाया जा रहा है वह...भाई जो रास्ता दंडकाराण्य में अपनाया जा रहा है वह माओ का रास्ता कत्तई नहीं है दूसरी बात यह कि कुछ पुलिस वालों को मारकर यह कहना कि हम क्रांति कर रहे हैं यह भी बेतुकी बात है। ठंडी-निर्मम हत्याओं की हिमायत हम नहीं कर रहे हैं क्योंकि रणभूमि में आमने-सामने की लड़ाई में ही शत्रु-वध का कर्म उदात्त होता है वैसे नहीं जैसा कि हो रहा है। <br />लेकिन, राज्या प्रायोजित हिंसा की प्रतिक्रिया में हताशा में की गयी कार्रवाई पर भी गौर करने की जरूरत है। इसमें कोई शक नहीं कि ये लोग क्रांति को आगे बढ़ाने का नहीं वरन उसे नुकसान पहुंचान का काम कर रहे हैं, इनके पास विज्ञान की समझ नहीं है लेकिन उनकी प्रो-पीपुल, क्रांति-धर्मा भावनाओं को सलाम।<br />गांधी जी यकीनन युग-पुरुष थे। उनके विचारों के झोलझाल पर बात हो सकती है पर उनका समुचित आदर करते हुए। मेरा भरपूर यकीन है कि अहिंसक सिर्फ मार्क्सवादी ही हो सकता है कोई और नहीं, बाकी सब छलावा है, भ्रम है। <br />जब तक हम विचारों की दुनिया में रहना नहीं सीखते, खुद को थिंकिंग बींग नहीं बनाते हिंसा और वह भी घटिया दर्जे की हमारा पीछा नहीं छोड़ेगी।<br />और आखिर में बारहठ जी, विचारधारात्मक हमला करने से पहले उसे जानना जरूरी होता है, गांधी जी को पढा ही है थोडा़ माक्स को भी पढो, माओ भी भले आदमी थे।<br />आमीनकामता प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/10017796675691176190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-80078512015027704692010-04-22T12:13:04.030+05:302010-04-22T12:13:04.030+05:30आदरणीय कामता प्रसाद जी!
आपको गाँधी की इंसाफ पंसदग...आदरणीय कामता प्रसाद जी!<br /><br />आपको गाँधी की इंसाफ पंसदगी पर भी ऐतराज है ? आपकी माओरति में इंसाफ भी बंदूक की गोली से ही निकलता है तो शायद निकलकर ही रहेगा। माओवादियों से ज्यादा मसिजीवी और आत्मरति ग्रस्त रुग्ण जन्तु तो ढूँढे से नहीं मिलेंगे, जो रोते तो बहुत हैं पर दुःख क्या है, यह उन्हें नहीं पता(दुःख यही है कि वे हड्डियां चबाना चाहते हैं)।<br />और भले आदमी कम से कम नागरिकता में तो विश्वास करो, गुण और इंसाफ की तो आपसे अपेक्षा ही क्या है !!!<br />हाँ मिर्गी के कुछ घरेलू इलाज भी हैं.. यदि आये तो... !प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-6846135606569796972010-04-22T07:53:30.297+05:302010-04-22T07:53:30.297+05:30निम्न शारीरिकता और हिंसा में निरंतर जीने वाले उभय...निम्न शारीरिकता और हिंसा में निरंतर जीने वाले उभयलिंगी बुद्धिजीवियों को दिल्ली-प्रायोजित दमन के खिलाफ उठने वाले प्रतिरोध के किसी भी स्वर से मिर्गी आने लगती है। काहे भाई, ऐसा क्यों करते है। हे मसिजीवी लोगों कम से कम अपने अंदर इंसाफ पसंद नागरिक के गुण तो विकसित करो और आत्म-रति से बाहर आओ।कामता प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/10017796675691176190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-15705958443797340972010-04-21T23:28:27.134+05:302010-04-21T23:28:27.134+05:30माओवाद का विरोध करने वालों में से बहुत कम लोगों ने...माओवाद का विरोध करने वालों में से बहुत कम लोगों ने माओ <br />को पढ़ा होगा. bluehimal की टिप्पड़ी गौर करने लायक है..Pratibha Katiyarhttps://www.blogger.com/profile/08473885510258914197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-64138436290605051482010-04-21T00:34:08.757+05:302010-04-21T00:34:08.757+05:30अफ़सोस है कि हम लोग विकास की बात करते हैं, हिंसा के...अफ़सोस है कि हम लोग विकास की बात करते हैं, हिंसा के समूल नाश की बात करते हैं, नव-भारत-निर्माण की बात करते हैं..और इस विकासोन्मुख शांत सुरक्षित नव-भारत के सुखद स्वप्न मे आदिवासियों के उस वर्ग का कोई स्थान नही जो हिंसा से परे रह कर निःशस्त्र बस अपनी जमीन वापस माँग रहे हैं जो विकसित समृद्ध भारत का सपना बेचने वाली फ़र्मों के द्वारा बेहिचक दुही जा रही हैं..और वे अहिंसक मगर करुण पुकारें हमारे कानों मे पड़ती भी नही..अरे हमारे कानों को तो मीडिया के कौए चुरा ले गये..!अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-79968437109332328462010-04-20T12:03:34.879+05:302010-04-20T12:03:34.879+05:30वाह सर! वाह ! आपने गाँधीवादियों की क्या पोल खोली ह...वाह सर! वाह ! आपने गाँधीवादियों की क्या पोल खोली है ! यह अलग बात है कि गाँधी ने हिंसा के छींटे लगने पर अपना आंदोलन वापस ले लिया था, लेकिन हिंसा के जस्टीफिकेशन के लिये गाँधी का उपयोग तो किया ही जा सकता है। आखिर कलम की कलाकारी और है किसका नाम, वह गरीबों के काम नहीं आयेगी तो हत्यारों के काम आयेगी ! <br /><br />अरे क्या कर रहे हैं मुझे बीबी-बच्चों समेत पेड़ से बांधकर गोली मार रहे हैं... मैं तो बिक्कास की बात कर रहा था भाई !प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-31605126404315261822010-04-19T12:11:00.033+05:302010-04-19T12:11:00.033+05:30@bluehimal very true, you clinched the apathy of o...@bluehimal very true, you clinched the apathy of our great middle class.<br /><br />Thanks for visit.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-22020472700476981392010-04-19T08:51:23.319+05:302010-04-19T08:51:23.319+05:30मै माओबादी को समर्थन नही उन्होने उठाया हुवा बिचारक...मै माओबादी को समर्थन नही उन्होने उठाया हुवा बिचारका समर्थन करता हुँ मै नेपाल से हुँ , मै कभी भी हिंसाके पक्षमे नही हुँ . माओ ने कभी भी लोगो पर अत्याचार करना नही सिकाया है. पर जब जब मानव पर दुसरे मानव हि अत्याचार करता है तो उसकी प्रतिशोध कि भावना जागकर किसी मजबूत संगठन कि तरफ मुड जाता है येही सामाजिक सिद्दान्त सिमान्तकृत लोग, आदिबासी, गरिब आदिपर लागु होता है और उन्लोग आन्दोलन के नामपर माओबादी संगठन कि तरफ लग जाते है. जबकी आजके युगमे माओबाद लागु होना दिनमे सपने देखने के बराबर है . यहाँ नेपाल मे भी वैसा ही हो रहा है, वो जो करने के बोलते वो नही करते, जो नही करना है वो कर जाते है. ज्यादा तर काम तो भारत् कि केन्द्र से प्रेरित होकर और् उनकी दवाव से हि हो जाता है . और एक बात यहाकी माओबादी को वैसी ताकत नही जो भारत के माओबादी को मदत कर सके. और ये सम्भव हि नही. ये जो आक्रमण हुवा वो भारत कि अपनी जनता पर हुइ भेदभाव को उजाकर करता है और उसिकी सनसनीखेज परिणाम है. जब लोग टीबी पर बे अर्थ कि सिरिअल देखना छोडकर दुसरे कि भावनाकी महसुस करते है तो माओबाद कि आवस्यकता हि नही पडति . क्यो कि हात कि सभी उन्गली बराबरी नही होती..पर हमे सभी उन्गलिकी बराबर महत्तो कि महसुस होनी चाहिए.bluehimalhttps://www.blogger.com/profile/04903948327482595659noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-29512924759291939862010-04-18T22:16:20.812+05:302010-04-18T22:16:20.812+05:30हत्या का विचार ही अपने आप में भयावह है…हत्या का विचार ही अपने आप में भयावह है…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-28815111258107586032010-04-18T15:09:51.005+05:302010-04-18T15:09:51.005+05:30माओवादियों की हत्या की अपेक्षा उनके विचारों की हत्...माओवादियों की हत्या की अपेक्षा उनके विचारों की हत्या करनी चाहिये..."Amitraghathttps://www.blogger.com/profile/13388650458624496424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-8787542116316964852010-04-18T14:36:28.827+05:302010-04-18T14:36:28.827+05:30shukriya...shukriya...varshahttps://www.blogger.com/profile/03696490521458060753noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-79028604048543957302010-04-17T16:35:38.431+05:302010-04-17T16:35:38.431+05:30जब तक भूखा इंसान रहेगा।
धरती पर तूफान रहेगा।।
यह न...जब तक भूखा इंसान रहेगा।<br />धरती पर तूफान रहेगा।।<br />यह नारा किसी कवि ने किसी उदास शाम नहीं लिखा था। इसलिए यह किसी सभागार की तालियों या भर्त्सना की धत्त, धत्त में कभी गुम नहीं होगा। यह एक जैविक सूत्र है जो हजारों सालों से जिन्दगी की चाल का पता बताता है। <br /><br />...और विकास। हां भइया बिक्कास। कौन कर रहा है। पिछले साठ साल का इतिहास इस बिक्कास का भी रोजनामचा है। सत्ता पाने की हड़बड़ी में आयं-बायं-सायं ढंग से फेंके गए पत्तों को मीडिया में बिक्कास कहने का फैशन है। <br /><br />एक ऐसे ही पत्ते की बानगी देखिए। हमारे मजबूत और लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने एक दिन पहले कहा- देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। पता नहीं इस अल्पसंख्यक में आदिवासी भी हैं या नहीं।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-62257215887438220712010-04-17T16:30:05.113+05:302010-04-17T16:30:05.113+05:30Shame on Naxal supporters. See this report -http:/...Shame on Naxal supporters. See this report -http://rajkaj.blogspot.com/2010/04/blog-post_17.html<br /><br />i quote " दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जिसे हम जेएनयू के नाम से जानते हैं वहां दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों के नरसंहार वाली रात को जश्र मनाया गया। (http://timesofindia.indiatimes.com/india/Pitched-battle-over-peoples-war-at-JNU/articleshow/5783093.cms) (http://www.ndtv.com/news/india/dantewada-aftershocks-at-jnu-19754.php) जिन लोगों ने जश्र मनाया उन्हें जवानों के मारे जाने की खुशी थी। उस जश्र में शामिल कभी मेरे सहपाठी के जरिये मुझे पता चला कि जश्र में जमकर धूम मची। शहीदों के शव पर जश्न वाह रे देश के सबसे अच्छे विवि में पढऩे वाले देश के महान लोगों.............. यह वो पहली खबर थी जिसने मुझे झकझोर दिया। यह खबर मुझे दिल्ली में ही रहने वाले एक दूसरे सहपाठी से पता चली। मुझे झटका लगा कि हम तो दुश्मन के घर पर भी मातम होने पर दुखी होते हैं पर ये...................कैसे लोग हैं जो हमारे ही जवानों की शहादत का जश्र मना रहे हैं।यह कम से कम भारतीय नहीं हो सकते।"<br /><br />SHAMEAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-3493162261268158582010-04-17T16:14:18.156+05:302010-04-17T16:14:18.156+05:30यह माओवादी समर्थकों की छटपटाहट का घिसा पिटा है। आठ...यह माओवादी समर्थकों की छटपटाहट का घिसा पिटा है। आठ दस बडे बडे शब्द रट लिये गये हैं और आतंक वादियों के समर्थन में शब्दों का नंगा नाच जारी है। सडक उडायें नक्सली, स्कूल उडायें नक्सली, हर घर से एक आदिवासी को जबरन बंदूख थमाये नक्सली और ताली बजाने के लिये आप तो हैं ही। <br /><br />भईया पहले तय कर लो कि लडाई विकास के लिये है कि विकास के खिलाफ? आदिवासी क्षेत्रों में आम तौर पर कोई प्रोजेक्ट लगना इस भारत में अब असंभव है क्योंकि वहाँ लाल-पलटन युद्धाभ्यास कर रही है और उनके सम्मान में भोंपू जो बज रहा है उसकी आवाज इस लेख में सुनिये। हत्यारों के समर्थक...... <br /><br />अनिरुद्ध, जगदलपुरAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3170390339784461302.post-44975388647313162782010-04-17T15:49:03.253+05:302010-04-17T15:49:03.253+05:30aapse sahmat hu aisa hi hona cahieyeaapse sahmat hu aisa hi hona cahieyeMahendrahttps://www.blogger.com/profile/05521785989665511741noreply@blogger.com