09 जनवरी, 2009
दुर्गा मिसिर का निधन
आज शाम कोई आठ बजे दुर्गा दादा का निधन हो गया। वही जो मेरी यात्रा की यात्रा के नायक थे और जिसे लिखना छोड़कर मैं अपने आलसीपने के कारण बीच में छोड़ कर लफंडरपन करने लगा था। रात कोई ग्यारह बजे सीपीआई के रा.सचिव अतुल कुमार अनजान ने फोन पर बताया। कोई फोटो तक नहीं है मेरे पास कि यहां लगा सकूं। पता नहीं क्यों लगता था कि वे और मैं हमेशा रहेंगे इसलिए कभी फोटू वगैरा का ख्याल तक नहीं आया। अनजान ने कहा कि उनके निधन की खबर अखबारों में दी जाए लेकिन ऐसे दिन गए कि मुहर्रम पर सारे अखबार बंद हैं। कल दिन में उन्हें चिता में जलता देखने की रस्म बाकी है। अब जब तक गढ़वाल यात्रा पूरी नहीं होगी, हारमोनियम पर कुछ और नहीं लिखा जाएगा। मैं हैरान हूं कि मेरे लिए वे बाप से बढ़कर थे क्योंकि मेरे दोस्त थे तो इस तरह अचानक कैसे बदल गए?
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बहुत दुःख हुआ सुन कर. यह दुःख भरी खबर मुझे बस अभी अभी मिली है आपके ब्लॉग से. रोक नहीं पाया मैं स्वयं को कमेन्ट करने से. दुर्गा दादा जिस से भी मिलते थे उसके दिल में उतर जाते थे. अब यही लग रहा है कि - "न वो लोग रहे ना वो दिन."
जवाब देंहटाएंअफ़सोस!
जवाब देंहटाएंअरे? अब आगे? कितना ऊंचा पहाड़?
जवाब देंहटाएंऐसे समाचार मर्मान्तक पीडादायी होते हैं।
जवाब देंहटाएंअफ़सोस!
जवाब देंहटाएंDurga dada ka jana taklifdeh hai..
जवाब देंहटाएंunhe hum aapki yatra se jante the or bina kisi parichay ke hum durga dada ke parichit ho gaye. ekaek unki nidhan ki suchana pakar laga dharti se ek or bhala or jivat aadami kam ho gaya. un par or suchintit dhang se likhiye, ab to apne 'usase' mukata ho jaeye!
कहने की बात नहीं पर दादा आपकी मार्फ़त अपने भी हो गए थे...एकदम धक्का सा लगा.
जवाब देंहटाएंNice Blog..keep it up.
जवाब देंहटाएं______________________________
''युवा'' ब्लॉग युवाओं से जुड़े मुद्दों पर अभिव्यक्तियों को सार्थक रूप देने के लिए है. यह ब्लॉग सभी के लिए खुला है. यदि आप भी इस ब्लॉग पर अपनी युवा-अभिव्यक्तियों को प्रकाशित करना चाहते हैं, तो amitky86@rediffmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं. आपकी अभिव्यक्तियाँ कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, वैचारिकी, चित्र इत्यादि किसी भी रूप में हो सकती हैं.
दुर्गा दादा के पास चेतना में दो-चार बार मुझे भी बैठने का सुयोग मिला था. ऐसे ही इक बार इक सज्जन दूकान में आये और इक बरसो पुरानी पत्रिका लेना चाह रहे थे. गजब तब हो गया जब उनहोंने दादा से कह दिया की इतनी पुरानी पत्रिका है, हाफ रेट में दीजिये. दादा उसपर बिगड़ पड़े. बाद में उस व्यक्ति ने सफाई दी की उस पत्रिका में उसकी कविता छपी है और उसकी प्रति खो गयी है. दूसरी प्रति के लिए उसके पास ६५ रुपये नहीं हैं. तब दादा ने उसे वह पुरानी पत्रिका मुफ्त में दे दी और उससे कहा पुरानी होने पर पत्रिकाएं और महँगी हो जाती हैं. दुर्गा दादा का जाना सचमुच कचोटता है.
जवाब देंहटाएंDurga mishir ek pratibadh insan the .aise log ab kahan hote hain.
जवाब देंहटाएंinpar vistar se likhiye
होली की शुभकामनाएं................
जवाब देंहटाएंkya ye blog post band ho gaya hai 9th jan ke baad se ??????
जवाब देंहटाएंAnil ji, aise gum hua nahin jata. Laut aaiye aur likhiye.
जवाब देंहटाएंकहाँ हैं जी? यात्रा आगे बढेगी ? अब हम सब तो आगे बढ़ने से रहें...
जवाब देंहटाएंआपका हारमोनियम उधर लड़ रहा है अडवानी से उन्हीं की ज़मीन पर.....मल्लिका साराभाई का निशाँ बनकर...अब अँधेरे में कुछ तो सही..
कहाँ हैं जी? यात्रा आगे बढेगी ? अब हम सब तो आगे बढ़ने से रहें...
जवाब देंहटाएंआपका हारमोनियम उधर लड़ रहा है अडवानी से उन्हीं की ज़मीन पर.....मल्लिका साराभाई का निशान बनकर...अब अँधेरे में कुछ तो सही..
ANIL BHAI, KAB TAK KHAMOSH RAHEGA HARMONIYAM. KYA VICHARON PAR BHI MANDI KA ASAR HAI? TAAR SAPTAK NA SAHI, MANDR-SAPTAK ME HI BAJAIYE. PAR HUJOOR, BAJAIYE TO SAHI...!
जवाब देंहटाएंदादा जी की आत्मा को मुक्ति मिलेगी - हमारी श्रध्धँजलि स्वीकारीयेगा
जवाब देंहटाएं- लावण्या
अनिल भाई
जवाब देंहटाएंअब लिखो भी। बहुत दिन हो गए। अब तो मम्मा और मन्ना भी परेशान हो गए