आहतोत्सुक साथी, कसम बजरंगी की (अनिल कुमार) को क्या पहचाना आपने। कहां थे अब तक। आगे कामरेड दुर्गा का भी वर्जन आने वाला है और यह बरसों तक हमारे अंतरंग संवाद का हिस्सा रहा है।
प्यारे कान्त्रेक्तोर इमोशनोविच प्रियोदारशोव (आहतोत्सुक जी), कितना अच्छा लगता है न घर से दूर खांटी घर वाली गालिंयों का उच्चारण कर उन पर मुग्ध होना। -हम बजाएं हरमुनिया- से पहली वाली लाइन क्यों नहीं लिखी जिसमें आपकी कामरेड पेलागेया नीलोवना का जिक्र आता है। काश आप सोवियत संघ में पैदा हुए होते तो रूस बनने की नौबत शायद नहीं आती लेकिन बजरंग दल की ईकाई वहां जरूर स्थापित हो गई होती। गुर्गा चाहता है कि आप चालू रहिए अभी तो शुरूआत है।
अनिल जी कबाङखाना में आपके इस्तकबाल में अशोक जी द्वारा काढे गए कसीदे पढे तो जिज्ञासावश यहां आना हुआ। लगे हाथ सब पढ डाला, शैली दिलचस्प लगी। अगली फुरसत में देखने कि उत्सुकता रहेगी उकताए हुए लोगों के सफर के अगले पङाव में क्या हुआ।
anil Bhai, kaise hain. durga dada par likhkar aachcha kam kiya hai.dada par aur likho. ak bat aur, ho sake to Akhileh mishra ji par bhai likhein. thank you your, brijendra dubey ranchi, jharkhand
धार्मिक भावनाएँ, राजनीतिक भावनाएँ, सदभावनाएँ और दुर्भावनाएँ...सब आपका इंतज़ार कर रही हैं कि आप उन्हें आहत कर दें...आपका इरादा भी कुछ ऐसा ही दिखै है.
जवाब देंहटाएंऑलवेज नॉनवेज़,
इट मुर्गा,
बीअवेयर ऑफ़ गुर्गा,
दिल से बजरंगी,
दिमाग़ से सुर्ख़ा,
टाइट करिए कलपुर्जा.
ज़रा ट्यून करिए अपने हारमोनियम पर.
आपका हारमोनियम कहीं... "हम बजाएँ हरमुनिया" वाला तो नहीं है?
आहतोत्सुक साथी,
जवाब देंहटाएंकसम बजरंगी की (अनिल कुमार) को क्या पहचाना आपने। कहां थे अब तक। आगे कामरेड दुर्गा का भी वर्जन आने वाला है और यह बरसों तक हमारे अंतरंग संवाद का हिस्सा रहा है।
कामरेड दुर्गा
जवाब देंहटाएंईटिंग मुर्गा
ड्रिकिंग ब्हिस्की
टेकिंग सिस्की
वेरी रिस्की
लाल सलाम।।।
अरे, पिटे हुओं को ओर कितना पीटौगे भइया? यह लाल सलाम वाले बड़े संवेदनशील होते हैं - भड़कते देर नहीं लगती.
चार-आठ आने कम पड़ रहे हों तेल को तो भिजवाने का बन्दोबस्त किया जाए बाबू साहब? दोनों कविताएं (आपकी और अनामदास की) कालजयी होने का माद्दा रखती हैं.
जवाब देंहटाएंजय हो.
अंतरंग सुवाद का हिस्सा रहे हैं - मुर्गा ,व्हिस्की,सिसकी भी ?
जवाब देंहटाएं'सस्ता शेर'वा पर चढ़ौले होता !
प्यारे कान्त्रेक्तोर इमोशनोविच प्रियोदारशोव (आहतोत्सुक जी),
जवाब देंहटाएंकितना अच्छा लगता है न घर से दूर खांटी घर वाली गालिंयों का उच्चारण कर उन पर मुग्ध होना। -हम बजाएं हरमुनिया- से पहली वाली लाइन क्यों नहीं लिखी जिसमें आपकी कामरेड पेलागेया नीलोवना का जिक्र आता है।
काश आप सोवियत संघ में पैदा हुए होते तो रूस बनने की नौबत शायद नहीं आती लेकिन बजरंग दल की ईकाई वहां जरूर स्थापित हो गई होती।
गुर्गा चाहता है कि आप चालू रहिए अभी तो शुरूआत है।
अनिल जी कबाङखाना में आपके इस्तकबाल में अशोक जी द्वारा काढे गए कसीदे पढे तो जिज्ञासावश यहां आना हुआ। लगे हाथ सब पढ डाला, शैली दिलचस्प लगी। अगली फुरसत में देखने कि उत्सुकता रहेगी उकताए हुए लोगों के सफर के अगले पङाव में क्या हुआ।
जवाब देंहटाएंपाठ, कुपाठ सब झेलने के लिए तैयार रहिये
जवाब देंहटाएंanil Bhai, kaise hain. durga dada par likhkar aachcha kam kiya hai.dada par aur likho.
जवाब देंहटाएंak bat aur, ho sake to Akhileh mishra ji par bhai likhein.
thank you
your, brijendra dubey
ranchi, jharkhand
अपना यूआरएल भेज दो। गुरू यह बेनामी खुल नही् रहा है।
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