अध्यापक और साहित्यकार। बहुत सांघातिक मेल है। बहुत कम ऐसे होते हैं जो इसके बावजूद संतुलित रह पाते हैं। वे ये दोनो होने के बावजूद बहुत निश्छल थे। मुझे साहित्य में उनके योगदान और उपलब्धियों से खास मतलब नहीं था। पाब्लो नेरूदा, ब्रेख्त, वाल्ट व्हिटमैन पर उनके काम से परिचय बाद में हुआ। उनकी सरलता के कारण उनके पास जाना अच्छा लगता था। बनारस के विवेकानंद नगर के उनके घर में दवाईयों की गंध होती थी, महुए के पत्ते में लिपटे पान के चौघड़ों से सूख कर झरता चूना और हर खाली जगह में ठुंसी किताबें। बीच में एक मसहरी के पास मुड़ी हुई तकियों की टेक जिसपर उनकी लंबी पीठ धनुषाकार छपी होती थी। मुंह पान होने के कारण या शायद साइनस के कारण बोलते समय उनकी गहरी सांस फंस कर निकलती महसूस होती थी। रिटायर हो जाने के बावजूद उन अंग्रेजी के पान घुलाते प्रोफेसर के पास एक बिल्कुल ताजी मुस्कान हुआ करती थी।
दिवराला का सती कांड हो चुका था। हम लोगों ने काशी विद्यापीठ के समाज विज्ञान संकाय में स्टुडेन्टस फेडरेशन की ओर एक विचार गोष्ठी रखी थी जिसका विषय नारी अबला कब तक या ऐसा ही कुछ था। पंद्रह-सत्रह श्रोता और वे मुख्य वक्ता। यह उस दौर का काशी विद्यापीठ था जहां लफंगे और लफूट किस्म के अध्यापक लड़कियों के बारे में ऐसे करते थे जैसे वे जानवरों से मुखातिब हों। ग्रेजुएशन की लड़कियां कलोर,मोटी लड़कियां गाभिन, रिसर्च छात्राएं बकेन और विवाहिताएं झनकही हुआ करती थीं। लड़कियां भी सिमट कर कोई ऐसा तरीका खोजती लगती थीं कि वे अदृश्य हो कर वहां पढ़ सकें। वहां इस गोष्ठी को सफल कहा जा सकता था। बाहर निकलते समय उन्होंने संकाय के बोर्ड पर लगे गोष्ठी के पोस्टर पर मेरा ध्यान दिलाया जहां अबला के नीचे किसी ने स्केच पेन से "तबला बजावा तबला" लिख दिया था। उन्होंने कहा कि यहां समांतर गोष्ठी चल रही थी। तबले का जवाब दिए बिना यहां कोई सार्थक बहस नहीं हो सकती।
वही चंद्रबली सिंह, जिन्होने अपनी सरलता से मुझ जैसों को विपरीत हवा में क्षण भर भी खडे रहने का साहस दिया था, चले गए। उनको नमन। आज पता चला मेरे जिले के थे, गाजीपुर के।
साहित्य के व्यापक परिप्रेक्ष्य से जुडी चर्चाऒं में मशगूल रहते थे। ant tak साहित्य और विचार की चेतना और संवेदना में कोई कमी नहीं आयी है . बिस्तर तक सिमटे रहने के बावजूद उनकी जिजीविषा में कमी नहीं आयी . वॆ अपने समय के जीवित इतिहास थे। उनके जैसी सरलता-सहजता अब दुर्लभ होती जा रही है । काश ! इस पुनर्रचना से सिक्त उनके अधूरे तथा अप्रकाशित काम पूरे हो जाते तो हिन्दी साहित्य की aur समृद्वि होती। उनका सहज-आत्मीय व्यक्तित्व और कृतित्व हमारे लिये प्रेरणास्रोत baba rahega. --Pramod
जवाब देंहटाएंरामविलास जी ने डेढ़ दशक पहले एक पत्र में चंद्रबली जी को लिखा भी था कि ’.... तुमने निराशा और मृत्यु का मुंह देख लिया है लेकिन पराजय तुम्हारे लिये नही है, धाराशाई होने पर भी नहीं है। .... (चंद्रबली जी की पत्नी के निधन पर डा. शर्मा का पत्र)
जवाब देंहटाएंchandrabali ji par itani antrang jaankaari paakar bahut achcha laga unako mera shat shat naman !
जवाब देंहटाएंउन्हें सलाम...
जवाब देंहटाएंग्रेजुएशन की लड़कियां कलोर,मोटी लड़कियां गाभिन, रिसर्च छात्राएं बकेन और विवाहिताएं झनकही हुआ करती थीं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन वर्गीकरण है.........
हां उनके लिए जो महिलाओं को पशु नेत्रों से देखते हैं-सप्रेम।
जवाब देंहटाएंचन्द्रबली सिंह जी का जाना काफी दुःख दे गया...
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