- आज मकबूल फिदा हुसैन चले गए।
2022 के जाड़े में एक पूरा दिन मैने हुसैन के साथ बनारस मे बिताया था। भोर से लेकर रात तक। उनके साथ उनकी एक सुंदर दोस्त भी थी जिसने उनकी आत्मकथा की खुशखती की है। उसी दोस्त की हस्तलिपि में वह किताब छपी है। चाय में डुबा के नई सड़क या दालमंडी में हम दोनों ने रूमाली रोटी खाई थी। कहीं फोटो भी छपा था। लौट कर हिन्दुस्तान मे मैने एक राइट अप लिखा था
'आखिरी दो कदमों का खालीपन।' तलाश रहा हूं लेकिन अब कोई पुरानी क्लिपिंग मेरे पास अब नहीं है। अगर किसी मित्र के पास हो तो कृपया मेल करें। उसे यहां लगाना चाहता हूं।
बहुत खुबसूरत राइट अप था . क्लिपिंग मेरे पास संभाल कर रखी है. बनारस के घर में किसी फाइल में . कई -कई बार पढ़ने लायक .
जवाब देंहटाएंआपने बहुत लय के साथ लिखा था. ."...वह अपने कस्टमर को देख रहा था और मकबूल अपने सब्जेक्ट को . "
भाई जी २०२२ छप गया है, सुधार लीजिये,
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक कहा, हां प्रमोद जी वही।
जवाब देंहटाएंहां इकबाल ये गड़बड़ हो गई। मैं ग्यारह साल बाद के हुसैन से मिल आया।
जवाब देंहटाएंबुझात हौ कुल बनरसिया डऊल दे देलन
जवाब देंहटाएंGAJAB!
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