सफरनामा

04 सितंबर, 2009

इतिहास का भूत!

इतिहासविद् ई.एच.कार ने इतिहास की परिभाषा दी है- इतिहास भूत और वर्तमान के बीच अविरल संवाद है। अरसा पहले इलाहाबाद विश्विवद्यालय के मध्य एवं इतिहास विभाग के उस नीमअंधेरे लेक्चर थिएटर में युवा शिक्षक श्री हेरंब चतुर्वेदी ने इस परिभाषा को बताते हुए पहला पाठ पढ़ाया था। बी.ए.का पहला दिन था। इंटर के बाद विज्ञान छोड़ आर्ट्स पढ़ने आए मेरे जैसे तमाम विद्यार्थी ये देख कर परेशान थे कि यहां इतिहास को विज्ञान बताया जा रहा था। हम तो विज्ञान से पिंड छुड़ाकर आए थे और यहां भी! धत् तेरे की।

बहरहाल इलाहाबाद स्कूल आफ हिस्ट्री में कूट-कूट कर भरा गया कि इतिहास वही है जो दस्तावेजों या अन्य सुबूतों से प्रमाणित किया जा सके। बाकी गल्प। हुआ भी यही। जल्दी ही मन की दुनिया में नायकों की तरह इतराती तमाम हस्तियों के दामन दागदार नजर आने लगे और घोषित खलनायकों के अच्छे कामों की फेहरिश्त भी सामने थी। दीन-ए-इलाही वाला फरिश्ता जैसा अकबर राजपूताने में खून सनी तलवार लेकर विधर्मियों का नाश कर रहा था तो मंदिर विध्वंसक औरंगजेब चित्रकूट के बालाजी मंदिर और उज्जैन के महाकालेश्वर में 24 घंटे घी के दिए जलाने और भगवान को भोग लगाने के लिए जागीर देने का फरमान जारी कर रहा था। शिवाजी औरंगजेब से दक्षिण की सरदेशमुखी और चौथ वसूली के अधिकार पर समझौता वार्ता करने आगरा आए थे। उन्हें महल में रखा गया था जहां से, समझौता न हो पाने पर वे निकल भागे, न कि किले की काल कोठरी में कैद थे, जैसा कि प्रचार है।

शिवाजी के खिलाफ औरंगजेब का सबसे बड़ा हथियार थे मिर्जा राजा जयसिंह और शिवाजी के सेनानायक का नाम था दौलत खां। उनकी हिंदू पदपादशाही की स्थापना में बीजापुर के मुसलमान सैनिकों की भूमिका किसी से कम नहीं थी। जब शाहजहां के अंत समय उत्तराधिकार का युद्ध हुआ तो हिंदू हो जाने का आरोप झेल रहे दारा शिकोह के खिलाफ कट्टर मुसलमान औरंगजेब का साथ देने में धर्मप्राण राजा जसवंत सिंह और मिर्जा राजा जय सिंह जरा भी नहीं हिचके। यही नहीं, मुगलों के खिलाफ लंबी लड़ाई ल़ड़ने वाली सिख सेना औरंगजेब के बाद हुए उत्तराधिकार युद्ध में बहादुरशाह प्रथम के साथ थीं। यानी न कोई ‘पक्का हिंदू’ था और न कोई ‘पक्का’ मुसलमान।‘

वाकई दिमाग चकरा गया था। बाद में हैरान मन को राहत मिली जब निदा फाजली का ये शेर सुना-‘हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिसको भी देखना कई बार देखना।‘ यकीन हो गया कि दुनिया सिर्फ काली-सफेद नहीं है। और सच्चाई का रंग अक्सर धूसर होता है। लेकिन हाल में जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी किताब ने जो विवाद पैदा किया, उसने बताया कि ये सारा ज्ञान किताबी है। हकीकत की दुनिया में इतिहासबोध दूर की कौड़ी है। इतिहास का जाम किस्सों की सुराही से ही ढालना पसंद किया जाता है। यही वजह है कि पाकिस्तान में गांधी जी की भूमिका नकारात्मक बताई जाती है और भारत मे जिन्ना तो खैर खलनायकों के सिरमौर हैं हीं। स्वाद तो अर्धसत्य में है, फिर पूरे सच से मुंह कड़वा क्यों करें।

पहले आडवाणी और अब जसवंत सिंह को जिन्ना में जो धर्मनिरपेक्षता नजर आ रही है, वो भी अर्धसत्य ही है। जिन्ना का वाकई मजहब से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन में किनारे कर दिए जाने से आहत होकर वे हिंदू-मुसलमान के दो कौम होने के सिद्धांत के साथ खड़े हो गए। इसे हिंदू महासभा के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर ने सबसे पहले सामने रखा था, जिसे गांधी जी के नेतृत्व वाले आंदोलन ने नकार दिया था। लेकिन जब जिन्ना ने इस सिद्धांत को पकड़ा तो आग भड़क गई। सीधी कार्रवाई के नाम पर बंगाल में जैसा खून बहा, वो कौन भूल सकता है। आखिरकार पाइप से धुंआं उगलते जिन्ना ने पाकिस्तान ले लिया। ये अलग बात है कि इसका भी उनके पास कोई स्पष्ट खाका नहीं था। अगर उनके निजी चिकित्सक सेना के डाक्टर कर्नल इलाहीबख्श पर भरोसा करें तो मौत के कुछ दिन पहले जिन्ना ने गहरी उदासी से कहा था-डाक्टर, पाकिस्तान मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल है। ( 1949 में प्रकाशित कर्नल इलाहीबख्श की किताब ‘कायदे आजम ड्यूरिंग हिज लास्ट डेज’, में इसका जिक्र है। बाद में 1978 मे जब कायदे आजम अकादमी, कराची ने इसे प्रकाशित किया तो ये अंश हटा दिया गया। तब तक ‘डिफेंस आफ आइडिया आफ पाकिस्तान एक्ट’ बन चुका था।)

जसवंत सिंह कहते हैं कि बंटवारे के लिए जिन्ना नहीं नेहरू और पटेल जिम्मेदार थे। इतिहासबोध कहता है कि कोई एक व्यक्ति न आजादी दिला सकता है, और न बंटवारा करा सकता है। जिन्ना को चाहे जितनी गाली दी जाए, पटेल, नेहरू यहां तक कि गांधी भी बंटवारे के लिए राजी हो गए थे। यानी सहमति सबकी थी। फिर जिन्ना अकले दोषी या निर्दोष कैसे हो सकते हैं। सच्चाई ये है कि भारतीय नेता डायरेक्ट एक्शन से होने वाले खून-खराबे से डर गए थे। वो ये नहीं भांप पाए कि विभाजन हुआ तो कहीं ज्यादा खून बहेगा। फिर एक हकीकत ये भी है कि अखंड भारत एक भावनात्मक विचार चाहे हो, अतीत का कोई कालखंड ऐसा नहीं था जब भारत का नक्शा इतना बड़ा रहा हो। कभी कोई राजा या बादशाह ताकतवर हुआ तो उसने बड़ा भूभाग जीत लिया लेकिन एक प्रशासनिक इकाई के तहत पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को अंग्रेज ही पहली बार लाए थे। इसलिए शायद जो मिल रहा था उसे लेकर ही हमारे नेताओं ने नया भारत बनाना बेहतर समझा। कोई ये भी कह सकता है कि उनमें कोई बिस्मार्क या लिंकन जैसे साहसी नहीं था जो एक विचार के लिए गृहयुद्ध के लिए तैयार हो जाता।

लेकिन दिलचस्प बात ये है कि विभाजन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कारक को लेकर सबसे कम बात हो रही है। वो कारक है साम्राज्यवाद। जिसने दुनिया के सबसे समृद्ध देश की रग-रग को चूस लिया और जब अपने ही ओठ से खून निकलने लगा तो मुंह पोंछते हुए निकल गया। या कहिए उसने शक्ल बदल ली। साम्राज्यवाद नए-नए रूपों में भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया पर खूनी पंजे फैलाए हुए है। यही वजह है कि भूख और बेकारी से लड़ने के बजाय इस क्षेत्र के देश हर वक्त जंगी मुद्रा में रहते हैं। सरकारें उसकी चेरी हैं और जनता चारा।
इलाहाबाद विश्विविद्यालय से इतिहास का वो आखिरी सबक बार-बार याद आता है जो डी.फिल की डिग्री के साथ मिला था—'जो इतिहास से सबक नहीं लेते वो इतिहास दोहराने को अभिशप्त होते हैं।'

4 टिप्‍पणियां:

  1. 'जो इतिहास से सबक नहीं लेते वो इतिहास दोहराने को अभिशप्त होते हैं।'

    -नोट कर लिया.

    अच्छा सार्थक आलेख!

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  2. itihas ke tathya aur itihas ki samjh dono alag bat hai. 'sach' bhi ektarfa ho sakte hain,hote bhi hain! or sach na daye hota hai, na bayein balki dono ke bich hota hai.(isko samanvyavad mat samajh lijiyega) jina -gandhi-nehru-patel sabke sath 'kuchh' aisa raha hoga jo un paristhitiyoan me vibhajan ke karak ban gaye.
    Pankaj ji,aabhar hai apka harmonium dhire-dhire hi sahi bajne laga hai. Bhaiya Anil to bas
    'kabdi' ke rup me dikhte rahe. u nko bhi koanchiye harmonium ke liye,nahi to sari vasundhara apani to hai hi.

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  3. जिसने दुनिया के सबसे समृद्ध देश की रग-रग को चूस लिया और जब अपने ही ओठ से खून निकलने लगा तो मुंह पोंछते हुए निकल गया।

    wah

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  4. काफी शानदार पीस। शासकों का कोई जाति-धर्म नहीं होता। ऐतिहासिक उदाहरणों से यह बात भलीभांति समझा दी। इसकी सामग्री तो किसी दूसरे मौके पर परचा छापकर वितरित करने वाली लगती है।

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