ध्यान की रहस्य गली में लारेन्स लीशान(http://en.wikipedia.org/wiki/Lawrence_LeShan)की मशहूर किताब 'हाऊ टू मेडिटेट' का पहला सफा कुछ यूं खुलता है:
यह वाकया कुछ बरस पहले वैज्ञानिकों की काफ्रेंन्स के दौरान हुआ। वे सभी वैज्ञानिक रोजाना ध्यान (मेडिटेशन) करने वाले थे। कांफ्रेन्स के चौथे दिन तक वे सभी किसी न किसी रूप में बता चुके थे कि वे कैसे ध्यान लगाते हैं, तब मैने जोर डालना शुरू किया कि वे बताएं कि क्यों ध्यान करते हैं। इसकी जरूरत क्या है। कई जवाब आए लेकिन हम सभी जानते थे कि वे संतोषजनक नहीं हैं। जो कहा जा रहा था वह इस सवाल का जवाब था ही नहीं। आखिरकार एक आदमी खड़ा हुआ और उसने कहा, "यह अपने घर लौटने जैसा है।" इसके बाद चुप्पी छा गई। देर तक सहमति में एक एक कर सिर हिलते रहे। जाहिर है कि अब किसी और जवाब की जरूरत नहीं रह गई थी।
मेडिटेशन क्यों? इस सवाल का उत्तर उस साहित्य में अनवरत गतिमान है जो इस अनुशासन का अभ्यास करने वालों ने लिखा है। हम कुछ पाने के लिए, फिर से स्वस्थ्य होने के लिए और सबसे बढ़कर अपनी उस किसी चीज (something) के पास लौटने के लिए ध्यान करते हैं जो कभी हमारे भीतर थी, जिससे हम अनजान थे या बस मद्धिम सा आभास था। फिर इसके पहले कि हम जान पाते कि वह चीज क्या थी, पता नहीं कहां और कब हमसे खो गई।
इसे हम अपनी भरपूर मानवीय क्षमता को पाने, या खुद के और यथार्थ के निकट होने, या जिजिविषा-उत्साह-प्यार करने के नैसर्गिक भाव को पाने, या हम ब्रह्मांड का भाग हैं और इससे कभी जुदा नहीं हो सकते के ज्ञान से रूबरू होने, या सचमुच प्रभावशाली ढंग से देखने और सक्रिय होने की अपनी क्षमता को हासिल करने का उपक्रम कह सकते हैं। जब हम ध्यान की दिशा में जुटते हैं तो पाते हैं कि मकसद के बारे में कही गई इन सारी बातों का मतलब एक ही है। उस क्षति के कारण ही, जिसकी भरपाई की तलाश ध्यान है, मनोवैज्ञानिक मैक्स वेरदाइमर ने वयस्क को "क्षतिग्रस्त बच्चे" के रूप में परिभाषित किया था।
ध्यान की झेन पद्धति का लंबे समय तक अध्ययन करने वाले यूजीन हेरीगेल ने लिखा है," कोआन (झेन स्कूल की एक ध्यान तकनीक) ऐसे बिन्दु पर ले जाती है जहां आप किसी भूली चीज को याद करते आदमी बन जाते हैं।" लुईस क्लाड डी सेन्ट मार्तिन ने ध्यान में अपने बहुतेरे साल खपाने के कारणों का सार कुछ इस अंदाज में पेश किया था, "हम सब विधवा जैसी हालत में हैं और हमारा काम फिर से विवाह करना है।"
अपनी सम्पूर्ण मानवता और मानव होने का जो भी अर्थ है उसका संपूर्ण उपयोग ध्यान का लक्ष्य है। ध्यान एक दृढ़ मन की जरूरत वाला कठोर अनुशासन है जो इस लक्ष्य की ओर जाने में सहायता करता है।
अंत में यह क्षेपक मेरी तरफ से जो युवा वेदांती शंकर ने कहा था-
प्रातः स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्वं
सच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम।
यत् स्वप्नजागरसुषुप्तमवेति नित्यं
तद्ब्रह्म निष्कलमहं न च भूतसंघः।।
(प्रातः मैं उस आत्मतत्व का ध्यान करता हूं जिसका स्फुरण हृदय में होता है। जो सत्-चित-आनंद स्वरूप है। जो परमलक्ष्य है, तुरीय अवस्था है। जो स्वप्न, जागृति और सुषु्प्ति तीनों अवस्थाओं का नित्य प्रकाशक है। मैं भूतों का समूह मात्र नहीं मैं वही निष्कल ब्रह्म हूं। )
अब लोग इधर नहीं आते। ध्यान के अनुकूल एकांत है :)
जवाब देंहटाएंमैं आ गया हूँ ना डिस्टर्ब करने..... मुझे यह फोटो बहुत अच्छी लगी.... वेरी स्वीट
जवाब देंहटाएंThank U Chaitnya dada
जवाब देंहटाएंdhyan lagane wale mahol ka dhyan kar rahe hain !!!
जवाब देंहटाएंवापिस घर लौटने जैसा ही हैं ध्यान।
जवाब देंहटाएंवापिस घर लौटने जैसा ही हैं ध्यान।
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