सफरनामा

19 अक्तूबर, 2008

करवा-चौथ का चांद


घड़ी से बेहतर गर्मियों के बारे में बताता है एक कीड़ा,
दिनों का जिन्दा कैलेंडर है स्लग (शराब का प्याला और कवचहीन घोंघा दोनों अर्थों में प्रयुक्त)
यह क्या बोलेगा मुझसे, जब एक कालातीत कीट
कह रहा है कि ये दुनिया छीज रही है?


ये लाइनें हैं डायलान थॉमस (1914-1953) की जो अपनी कीर्ति में स्नान करते हुए, अतीव शराबखोरी के कारण बस ३९ साल की उम्र में न्यूयार्क में मरे। बस और क्या।

वैसे स्वैन सी वेल्स में जन्मे, लंदन में पढ़े. बीस साल में पहला कलेक्शन आया जो सर्रियलिज्म और अथाह कल्पनाशीलता के कारण बेहद मकबूल हुआ. अगले पंद्रह सालों में चार-पांच कलेक्शन और आए जो भाषा की ताजगी और बदहवास आदमी के भीतर झांकती कवि-आंख के कारण जाने गए. डाक्यूमेंटरी मोशन पिक्चर्स के लिए पटकथाएं लिखीं, उपन्यास भी लिखा. दूसरी बड़ी लड़ाई के बाद बीबीसी में साहित्यिक टिप्पणीकार रहे. असली ख्याति मिली एक रेडियो ड्रामे अंडर मिल्क वुड से जो उनके गुजरने के बाद १९५४ में छपा. अभी यह ड्रामा अधूरा था कि डायलान ने इसका अपने ही अंदाज में कैम्ब्रिज मैसाचुएटस में पाठ किया. पाठ के अंदाज के कारण थॉमस अमेरिका में लीजेंड बन गए. पता नहीं, उनकी
विलक्षण कविताओं से ज्यादा उनके पढ़ने के अंदाज की बात क्यों होती है.

चांद में बैठा मसखरा

मेरे आंसू हैं, खामोश मद्धिम धारा
बहती जैसे पंखुड़ियां किसी जादुई गुलाब से
रिसता है मेरा दुख सारा
विस्मृत आकाश और बर्फ के मनमुटाव से.

मैं सोचता हूं, जो छुआ धरती को मैने
कहीं छितर न जाए भुरभुरी
यह इतनी दुखी है और सुंदर
थरथराती हुई एक स्वप्न की तरह.

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्यासा वाले गुरूदत्त के बिरादर लगते हैं। वैसे इस हलके में जनाब आपने भी कम तरक्की नहीं की है।

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  2. मय से गरज निशात किस रूह सियाह को है
    एक गुना बेखुदी मुझे दिन रात चाहिए (ग़ालिब)
    आप सभी आलिम-दानिश हैं, शेर में जो शब्द गड़बड़ लगे थी कर लें.
    रही कविता की बात तो आजकल ऐसी ही कवितायेँ भाती हैं दिले बेकरार को

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  3. लगता है इन दिनों कविता में मगन हो। कुमिंग के बाद यह कविता बताती है कि यह आपकी नई शरणस्थली है। मुझे लगता है कविता से बेहतर कोई शरणस्थली नहीं। यहीं असल राहत मिलती है।

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  4. हां रवीन्द्र बाबू कविता तो खैर है ही, दुनिया को जानते-बूझते बरबाद हुए लोगों की जिंदगियां भी सकून देती हैं। थिएटर के दरवाजे पर खड़ा प्यासा कैसा लगता है आपको?

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  5. जानते-बूझते बरबाद हुए लोगों `itne nada.n bhi nahi the ja.n se jaane wale`

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  6. partenary mein khatarnak(baudhik) hote ja rahe hain.kavita , kala, theatre ke dunia me ujade or barbad log rachte hain ek nai dunia--jo abad or satwik dunia se kahi jyada sukun dete hain.

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