ब्लाग से ब्लाह, ब्लाह।
एक शाइस्ता किस्म के विधायक जी थे। यह बानबे था। उनके डेरे दारूलशफा के बड़े वाले हाल में दरी पर छह पत्रकार रहते थे। गरमी के दिनों देर रात, जब कभी विधायक जी अपने क्षेत्र से आते तो पाते कि अपने बर्थ-डे सूट में अंडरवीयर या पटरवाले जांघियों के संशोधन के साथ वे छह स्वपनों, आशंकाओं, अवसादों, उन्मादों, अखबारों, किताबों में लिपटे सोए मिलते और वे उनकी तरफ हाथ उठाकर बुदबुदाते- ....हं, हई देखिए ये पत्रकार लोग हैं।
डेरे में एक टूटा स्टंप था और गुरमा मारकुंडी कहीं से एक कंचा लहा लाए थे। देर रात गए उस गोली की गेंद और स्टंप के बल्ले से वे छह क्रिकेट भी खेलते थे। पीपुल फीिलडिंग में जान लगा देते थे और खुद को जोंटी रोडस से कम नहीं समझते थे। वे किसी काकटेल पार्टी में घुस पाते तो वहां से गुरमा के लिए भी दारू और खाना पैक कराकर ही आते थे। कभी-कभार आंगन की मोरी को बनियान से बंद कर घुटनों तक पानी भरने के बाद तैराकी का कंपटीशन भी हो लिया करता था।
श्री कंट- यह नाम उनके नैन्सी फ्राइडे के लिखे की त्वरित भौतिक प्रतिक्रिया देने वाले घनघोर पाठक होने के कारण मिला था। उन ने उस दिन विधायक जी की एक रोलदार कापी फाड़ी और कई पन्नों पर ब्लाह। ब्लाह। .आई एम ममाज ब्वाय- चमकीले पेन से लिखकर दीवारों पर चिपका दिया। और फकत एक चड्ढी में कैलिप्सो करने के बाद खुद बिछौने पर गुलाटी खाने लगे। फिर सबको एक एक टाफी दी अपनी एक कनपटी पर आंच वाले दिन कविता सुनाई। फिर रोने लगे और सुबकते-सुबकते सो गए। देर रात गुरमा लौटे तो बताया कि आज श्री कंट का जन्मदिन था किसी ने विश किया?
सबसे निरपेक्ष पगुराते, धर्नुजंघी टांगों वाले और इलस्ट्रेशन खींचने में माहिर कलाकार फकिंग गाय थे। जो हमेशा भोजन के चक्कर में रहते थे। सबकी आंख बचा कर वे दस रूपया भर पेट वाले होटल में रोटियां गिन ही रहे होते कि अचानक रेड पड़ती और उनके मुंह से बस इतना ही निकल पाता-नििश्चत ही मैं तुम सब को बुलाने वाला था। भाऊ कभी-कभार लोक संवेदना, लोकधर्मी पत्रकारिता वगैरा की बहस से पेट न भरने पर, सरकारी हीटर पर खिचड़ी पकाने बैठते थे। अभी वे चावल बीन ही रहे होते कि उनके खुजलाने की लयबद्ध प्रलयंकर अदा के कारण शुचिता बोध का विस्फोट हो जाता और बहस बौद्धिकता और मलिच्छपन के पेंच लड़ाने लगती थी।
एक बार नवरात्र में श्रीकंट और भाऊ ने पूजा भव्य बंधान बांधा। धूप, दशांग, गुग्गुलादि हवन सामग्री को शंकर भगवान के काफी हाउस के सामन खरीदे पोस्टर के सामने सजा कर दोनों नहाने गए। तभी हर हफ्ते नया हुलिया बनाने के शौकीन जखाकू असली नेपाली मिरचईया लेकर मिर्जापुर से प्रकट हुए और बताने लगे ट्रैक्टर चलाते-३ उनके चूतरों पर गट्ठे पड़ गए हैं और अब वे फिर जर्नलिज्म में एिक्टव होना चाहते हैं। काहे, तो दुर मरदे जौन भौकाल हेम्मे हौ और कत्तों मिली। हम पत्रकार ना निरल्लै किसान रहित त अबले रोवां-रोवां तहसील वाला लील्लाम कई देहले रहतैं।
बहरहाल इसी बीच किसी ने जखाकू का रेल टिकट किसी ने बैल की आंख पर चिपका दिया और स्केच पेन से शंकर भगवान की दाढ़ी बनाकर चूने से गोल नमाजी टोपी पहनाने का प्रयास कर डाला चुका था जिसमें जालियां भी कटी हुई थीं।
बिना सिले कपड़ों में पवित्र भाव से इष्टदेव को हृदय में स्थापित कर श्रीकंट और भाऊ जब हवन के लिए पहुंचे तो भाऊ के मुंह से निकला आहि माई कमनिस्टवा कुल इ का कई दिहलैं और कंट थोड़ी देर शून्य में निहारने के बाद वहीं धड़ाम से गिर कर बेहोश हो गए।
कल रात, बारिश में, एक रेखियाउठान लड़के को कमीज के सारे बटन खोले हुच्च--- बाइक पर उड़ते देखा तो उन सभी की और उनके पंखयुक्त सपनों की बेतरह याद आई। उसके पीठ में घुसकर, बाइक पर एक दुबली सी लड़की बैठी थी जो कह रही थी, हैन्सम नो, नो नाट दिस वे इसी सड़क पर तो मेरा घर है।
लड़के ने कहा, डैम इट लेट देम नो इट टू नाइट। या सिर्फ कहा हो योप्प....। लेकिन मैने कैसे सुना।
भाऊ बहुत दिन जनसत्ता की एक कटिंग लिए फिरते थे। जिसमें ग्वालियर में भाजपा किसी सम्मेलन की रपट थी। पढ़ते थे- आसमान में घना कुहरा था, कहीं कुहरे के भीतर जहाज डोल रहा था। अटल जी मन ही मन बुदबुदाए लैंड करना मुिश्कल होगा। फिर कहते थे- कहो हई अलोक तोमरवा मान ला जहजिए में बैठल रहे त, मन में क बुदबुदाइल कइसे सुन लिहलस।
त रउवा सभे कहां बानी आजकल और कहां तक पहुंचे। आजतक मैं आज तक नहीं जान पाया हूं कि बैल की आंख पर टिकट किसने चिपकाया था?
पहले सुना था यह सब। पढ़कर और मजा आया। भाऊ कहां हैं, कोई खबर है....
जवाब देंहटाएंpranam sir, shayad bhool gaye honeg. ek baar kolkata se aapke paas kaam ke liye sifarish lekar aaya tha lucknow. aapka blog dekh kar man khush ho gaya. ab to bahut kuch seekhane ko milega.
जवाब देंहटाएंVishal Shukla
aapke yadon ke kitab ke kirdar dil jeet lete hain....it is immetrial wether these charactors r real or imaginary because all events seems to be independent of time dimension...goin thru ur blog is like a journy from one destination to other....
जवाब देंहटाएं