पिता अचानक पॉवर हाउस हो जाएं तो अंधियारे से बाहर आए बेटे चौंधिया कर गदर काटने ही लगते हैं। जहां भी पॉवर है, उसका प्रदर्शन है। वह दिखे नहीं तो पॉवरफुल को अपना होना व्यर्थ लगने लगता है। पॉवर होगा तो खैर, खून, खांसी, खुशी और अनुराग की तरह ही छिप नहीं सकता, इसमें नया कुछ नहीं है।
नया वह है जो मायवती सरकार के मंत्रियों के घरों में हो रहा है। बेटों को पता है कि पिता यानि मंत्री जी, पांच कालिदास मार्ग पर जो अगली बैठक होगी, उसमें फटकारे जाएंगे, उन्हें अलग खड़ा कर सबके सामने अपने लाडलों की करतूत बयान करने के लिए भी कहा जा सकता है। यहां तक कि जिसकी वजह से पॉवर है, मंत्री पद भी जा सकता है। एक झटके में पॉवर का लट्टू जो अभी जला ही जला है, फुस्स हो सकता है। फिर भी वे नहीं मान रहे।
मुख्यमंत्री मायवती अपने एक सांसद और दो मंत्रियों को जेल भिजवाने के बाद इन दिनों ईमानदारी से इस कोशिश में लगी हुई हैं उनका कोई मंत्री या विधायक कानून अपने हाथ में न ले। एक साल से थोड़ा पहले उन्हें जो बहुमत का जनादेश मिला था, वह सर्वजन फार्मूले से ज्यादा पिछली सपा सरकार के मंत्रियों विधायकों की गुंडागर्दी के खिलाफ मिला था और फिर लोकसभा के चुनाव सामने हैं। जिस सरकार ने कानून के राज को अपने एजेंडे पर सबसे ऊपर रखा हो, उसके मंत्रियों के बेटे इसी तरह गदर काटते रहे तो वह लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के सामने क्या मुंह लेकर जाएगी? इसी सवाल ने मायावती को परेशान कर रखा है। अपने सरकारी घर, पांच, कालिदास मार्ग पर पिछली बैठक में मायावती ने तीन मंत्रियों, कई विधायकों को जब खड़ा करके अपने ही अंदाज में जब समझाया था तो उनके चेहरे पर यही परेशानी, गुस्सा बनकर उभर आई थी। उसी दिन सुबह मुख्यमंत्री ने महाराजगंज कोतवाली में भीड़ के साथ घुसकर एक कांस्टेबिल की हत्या के आरोप में जमुना प्रसाद निषाद को गिरफ्तार भी कराया था। यानि वह बैठक एक मंत्री की गिरफ्तारी के मंगलाचरण के साथ शुरू हुई थी।
अगर मंत्रियों के बेटों को मायावती जैसी मुख्यमंत्री का भय भी नहीं रोक पा रहा है तो जरूर इसके कुछ कारण होंगे और उनकी बुनियाद उस भावना में होनी चाहिए जो आदमी को अपने बस में लेकर थोड़ी देर के लिए हर तरह के भय से मुक्त कर देती है। यही सत्ता की खास चारित्रिक विशेषता है।
जो बेटे या युवा इन दिनों गदर काट रहे हैं उन सबमें एक खास समानता है। वे सभी दलित, पिछड़े हैं, सत्ता का चस्का नया है और नौसिखिए हैं। लालबत्ती, दरवाजे पर चंपुओं की जय-जयकार, फटकारने के बाद भी न हिलने वाली फरियादियों की भीड़ और मालिक, आपसे ज्यादा जलवा किसका की फुहारों से अकबका कर वे लड़खडाते हुए निकल पड़े हैं। जलवा के पावरप्ले में यह पहली पीढ़ी है, इसलिए उन्हें नहीं पता कि जलवा कैसे महसूस कराया जाता है। रौब, जलवा, आतंक, हनक वगैरा को बहुत पहले ही जमींदारों के सामंती युग में ही क्राफ्ट में बदल डाला गया था। जिसके पास पॉवर हो उसे खुद हाथ गंदे करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसका एक कारण यह है कि जलवा सबसे अधिक असरदार तब होता है जब आप अनुपस्थित हों और वह किसी बहुरूपिए की तरह भेष बदल कर तरह-तरह से लोगों के सामने प्रकट हो।
पॉवर को इस्तेमाल करने का ग्रामर न जानने के कारण ही ये नौसिखिए बेटे गच्चा खा रहे हैं और अपने पिताओं के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। झांसी में मंत्री रतनलाल अहिरवार के बेटे ने अपने दोस्त का क्रेशर बिठाने का विरोध करने वाले आदमी को धमकाने के लिए फायरिंग की तो उसकी बीवी जूझ गई और भीड़ ने घेर लिया। बेटे को अपना लावलश्कर छोड़कर भागना पड़ा। सबूत के तौर गाड़ी और रायफल भी वहीं छूट गई। अंबेडकर नगर के अस्पताल में परिवहन मंत्री रामअचल राजभर के बेटे को अपने चिरकुट पत्रकार दोस्त को जलवा दिखाना था जो चाहता था कि एक वकील की बीवी से पहले डाक्टर उसे अटेंड करे। वकीलों की भीड़ ने मंत्री के बेटे और दोस्तों को धुनक दिया, महीने भर हड़ताल पर रहे और अब लखनऊ हाईकोर्ट में आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दाखिल कर दिया है। याचिका में इस बात का जिक्र है कि रामअचल राजभर जो सन् १९९२ तक साइकिल पर लाउडस्पीकर बांधकर चूहा मार दवाई बेचते थे, के पास इतनी संपत्ति कहां से आई। गोरखपुर में मंत्री सदल प्रसाद के भाई ने
अपने एक परिचित को हनक दिखानी चाही, नही् दिखी तो बिजली विभाग के एक क्लर्क पर कट्टा तान दिया। यह नौसिखियापन नहीं तो और क्या है। ये जिन्हें डराने की कोशिश कर रहे हैं वे सभी मामूली लोग है और यह भी जानते हैं कि ये नए जलवा गर कल तक हमारी ही हालत मे डरे, सहमें रहा करते थे। इसी कारण वे सरकारी ताकत की परवाह न करते हुए उनसे जूझ जा रहे हैं। लेकिन यह नया-नया नशा है जिसके आगे मंत्रियों के बेटे मजबूर हैं। जब उतरेगा तब सोचेंगे क्या बुरा था क्या भला।
जरा इन बेटों की तरफ खड़े होकर सोचिए कि उनके सामने विकल्प क्या है। अब तक जो तथाकथित कुलीन, भद्र, सुसंस्कृत, ऊंची सोच के लोग सत्ता में रहे उन्होंने भी तो यही किया। पॉवर का ग्रामर जानते थे इसलिए अपने हाथ गंदे नहीं किए, खुद नहीं फंसे और बलि के लिए पाले बकरों से काम चलाते रहे। इनके सामने सत्ता के इस्तेमाल का और मॉ़डल है ही नहीं। यह कुछ वैसा ही है कि जंगल में भेडि़ए के साथ पला बच्चा भेड़िया हो जाता है। अपवाद के तौर पर कुछ लोगों ने सत्ता का इस्तेमाल कमजोरों की सरपरस्ती और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए जरूर किया है। उनके रास्ते पर चलना जरा जिगरे का काम है जिसे इन दिनों मूर्खता भी कहा जाता है।
नया वह है जो मायवती सरकार के मंत्रियों के घरों में हो रहा है। बेटों को पता है कि पिता यानि मंत्री जी, पांच कालिदास मार्ग पर जो अगली बैठक होगी, उसमें फटकारे जाएंगे, उन्हें अलग खड़ा कर सबके सामने अपने लाडलों की करतूत बयान करने के लिए भी कहा जा सकता है। यहां तक कि जिसकी वजह से पॉवर है, मंत्री पद भी जा सकता है। एक झटके में पॉवर का लट्टू जो अभी जला ही जला है, फुस्स हो सकता है। फिर भी वे नहीं मान रहे।
मुख्यमंत्री मायवती अपने एक सांसद और दो मंत्रियों को जेल भिजवाने के बाद इन दिनों ईमानदारी से इस कोशिश में लगी हुई हैं उनका कोई मंत्री या विधायक कानून अपने हाथ में न ले। एक साल से थोड़ा पहले उन्हें जो बहुमत का जनादेश मिला था, वह सर्वजन फार्मूले से ज्यादा पिछली सपा सरकार के मंत्रियों विधायकों की गुंडागर्दी के खिलाफ मिला था और फिर लोकसभा के चुनाव सामने हैं। जिस सरकार ने कानून के राज को अपने एजेंडे पर सबसे ऊपर रखा हो, उसके मंत्रियों के बेटे इसी तरह गदर काटते रहे तो वह लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के सामने क्या मुंह लेकर जाएगी? इसी सवाल ने मायावती को परेशान कर रखा है। अपने सरकारी घर, पांच, कालिदास मार्ग पर पिछली बैठक में मायावती ने तीन मंत्रियों, कई विधायकों को जब खड़ा करके अपने ही अंदाज में जब समझाया था तो उनके चेहरे पर यही परेशानी, गुस्सा बनकर उभर आई थी। उसी दिन सुबह मुख्यमंत्री ने महाराजगंज कोतवाली में भीड़ के साथ घुसकर एक कांस्टेबिल की हत्या के आरोप में जमुना प्रसाद निषाद को गिरफ्तार भी कराया था। यानि वह बैठक एक मंत्री की गिरफ्तारी के मंगलाचरण के साथ शुरू हुई थी।
अगर मंत्रियों के बेटों को मायावती जैसी मुख्यमंत्री का भय भी नहीं रोक पा रहा है तो जरूर इसके कुछ कारण होंगे और उनकी बुनियाद उस भावना में होनी चाहिए जो आदमी को अपने बस में लेकर थोड़ी देर के लिए हर तरह के भय से मुक्त कर देती है। यही सत्ता की खास चारित्रिक विशेषता है।
जो बेटे या युवा इन दिनों गदर काट रहे हैं उन सबमें एक खास समानता है। वे सभी दलित, पिछड़े हैं, सत्ता का चस्का नया है और नौसिखिए हैं। लालबत्ती, दरवाजे पर चंपुओं की जय-जयकार, फटकारने के बाद भी न हिलने वाली फरियादियों की भीड़ और मालिक, आपसे ज्यादा जलवा किसका की फुहारों से अकबका कर वे लड़खडाते हुए निकल पड़े हैं। जलवा के पावरप्ले में यह पहली पीढ़ी है, इसलिए उन्हें नहीं पता कि जलवा कैसे महसूस कराया जाता है। रौब, जलवा, आतंक, हनक वगैरा को बहुत पहले ही जमींदारों के सामंती युग में ही क्राफ्ट में बदल डाला गया था। जिसके पास पॉवर हो उसे खुद हाथ गंदे करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसका एक कारण यह है कि जलवा सबसे अधिक असरदार तब होता है जब आप अनुपस्थित हों और वह किसी बहुरूपिए की तरह भेष बदल कर तरह-तरह से लोगों के सामने प्रकट हो।
पॉवर को इस्तेमाल करने का ग्रामर न जानने के कारण ही ये नौसिखिए बेटे गच्चा खा रहे हैं और अपने पिताओं के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। झांसी में मंत्री रतनलाल अहिरवार के बेटे ने अपने दोस्त का क्रेशर बिठाने का विरोध करने वाले आदमी को धमकाने के लिए फायरिंग की तो उसकी बीवी जूझ गई और भीड़ ने घेर लिया। बेटे को अपना लावलश्कर छोड़कर भागना पड़ा। सबूत के तौर गाड़ी और रायफल भी वहीं छूट गई। अंबेडकर नगर के अस्पताल में परिवहन मंत्री रामअचल राजभर के बेटे को अपने चिरकुट पत्रकार दोस्त को जलवा दिखाना था जो चाहता था कि एक वकील की बीवी से पहले डाक्टर उसे अटेंड करे। वकीलों की भीड़ ने मंत्री के बेटे और दोस्तों को धुनक दिया, महीने भर हड़ताल पर रहे और अब लखनऊ हाईकोर्ट में आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दाखिल कर दिया है। याचिका में इस बात का जिक्र है कि रामअचल राजभर जो सन् १९९२ तक साइकिल पर लाउडस्पीकर बांधकर चूहा मार दवाई बेचते थे, के पास इतनी संपत्ति कहां से आई। गोरखपुर में मंत्री सदल प्रसाद के भाई ने
अपने एक परिचित को हनक दिखानी चाही, नही् दिखी तो बिजली विभाग के एक क्लर्क पर कट्टा तान दिया। यह नौसिखियापन नहीं तो और क्या है। ये जिन्हें डराने की कोशिश कर रहे हैं वे सभी मामूली लोग है और यह भी जानते हैं कि ये नए जलवा गर कल तक हमारी ही हालत मे डरे, सहमें रहा करते थे। इसी कारण वे सरकारी ताकत की परवाह न करते हुए उनसे जूझ जा रहे हैं। लेकिन यह नया-नया नशा है जिसके आगे मंत्रियों के बेटे मजबूर हैं। जब उतरेगा तब सोचेंगे क्या बुरा था क्या भला।
जरा इन बेटों की तरफ खड़े होकर सोचिए कि उनके सामने विकल्प क्या है। अब तक जो तथाकथित कुलीन, भद्र, सुसंस्कृत, ऊंची सोच के लोग सत्ता में रहे उन्होंने भी तो यही किया। पॉवर का ग्रामर जानते थे इसलिए अपने हाथ गंदे नहीं किए, खुद नहीं फंसे और बलि के लिए पाले बकरों से काम चलाते रहे। इनके सामने सत्ता के इस्तेमाल का और मॉ़डल है ही नहीं। यह कुछ वैसा ही है कि जंगल में भेडि़ए के साथ पला बच्चा भेड़िया हो जाता है। अपवाद के तौर पर कुछ लोगों ने सत्ता का इस्तेमाल कमजोरों की सरपरस्ती और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए जरूर किया है। उनके रास्ते पर चलना जरा जिगरे का काम है जिसे इन दिनों मूर्खता भी कहा जाता है।
yeh post ite dino bad padh(kyoan)padh raha hoon. hindi me jo rachanakar dalit or istri vimarsh ko dhol pitkar sahanubhuti or swanubhuti me phekate hain--uski yad aa gaye barbas! sachmuch yeh post vimarshkari hai. samanti vargaon ka hi mulya havi hai---is sata sankriti me.
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