सफरनामा

15 मार्च, 2010

सी. अंतरात्मा का कौतुक

केएनवीएएनप-9
सी. अंतरात्मा को कंडोम बाबा बहुत दिलचस्प आदमी लगे, उस शाम अनायास उनका स्कूटर सर्किट हाउस की तरफ मुड़ गया और वह इंटरव्यू करने के बहाने उनसे मिलने चले गए। वे इस विचित्र आदमी को एक बार फिर देखना और उसकी छवि अपने मन में ठीक से बिठा लेना चाहते थे। उन्होंने सोचा था, लगे हाथ कंडोम के आठ-दस पैकेट भी मांग लेंगे। घर में पड़े रहेंगे, कभी-कभी काम आएंगे।

सी. अंतरात्मा हमेशा इतने चौकन्ने रहते थे कि उन्हें अचूक ढंग से पता रहता था कि काम की कोई भी चीज मुफ्त में या कम से कम दाम में कहां मिल सकती है। उनमें अगर यह काबिलियत नहीं होती तो प्रेस की तनख्वाह से उनकी गृहस्थी का चल पाना असंभव था। दवाओं के मुफ्त सैंपल वे फार्मासिस्टों, डाक्टरों के यहां से लेते थे, बच्चों की किताबें सीधे प्रकाशकों से मांग लाते थे, कपड़े कटपीस के रियायती दाम पर लेते थे, प्रेस कांफ्रेंसों में मिलने वाले पैड और कलमें साग्रह बटोरते थे जो बच्चों के काम आते थे। वहां गिफ्ट में मिलने वाले सजावटी सामानों को वे दुकानदारों को बेचकर नकद या अपने काम की चीजें लेते थे। खटारा स्कूटर उन्हें एक सजातीय थानेदार ने सुपुर्दगी में दिया था जो एक कुर्की के बाद थाने के अहाते में पड़ा सड़ रहा था। उन्हें अखबार की जो कांप्लीमेंट्री कॉपी मिलती थी, वे उसे पढ़ने के बाद आधे दाम में घर के सामने चाय वाले को बेच देते थे और इस पैसे से बच्चों को यदा-कदा बिस्कुट, नमकीन वगैरह दिला दिया करते थे।

सर्किट हाउस में घंटी बजाने के बाद कंडोम बाबा ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला अंतरात्मा ने आदतन और थोड़ा उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में झुककर, आत्मीय मुस्कान के साथ पूछा, यहां पर आपको कोई दिक्कत तो नहीं है, बेहिचक बताइएगा आप हमारे मेहमान हैं। कंडोम बाबा बिदक गए, यह सर्किट हाउस है या डकैतों का अड्डा, एक साफ तौलिया तो दे नहीं सकते दिक्कतें पूछने चले आते हैं। अंतरात्मा अकबका गए, कुछ बोल ही नहीं पाए और भड़ाक से दरवाजा बंद हो गया। पूरे सर्किट हाउस में एक ही चीकट तौलिया था जो वेटर ने कंडोम बाबा को दे दिया था। उन्होंने साफ तौलिया मांगा तो उसने उन्हें बताया कि आप ही जैसे गेस्ट लोग उठा ले जाते हैं इसलिए कोई और बचा ही नहीं है। कंडोम बाबा ने मैनेजर से शिकायत की तो उसने बताया कि इस साल अभी तक सामानों की खरीद नहीं हुई है। सी. अंतरात्मा जब इंटरव्यू मुलाकात के लिए पहुंचे, उस वक्त भन्नाए हुए कंडोम बाबा जिलाधिकारी को शिकायती पत्र लिख रहे थे और उन्होंने उन्हें सर्किट हाउस का वेटर समझ लिया था।

अंतरात्मा दफ्तर लौटकर यह किस्सा सुना रहे थे कि सिटी चीफ ने उन्हें डांटा कि 'इतनी बड़ी खबर' उनके पास है और वह बैठे चकल्लस कर रहे हैं। अगले दिन यह तौलिए वाली खबर कंडोम बाबा के बदनाम बस्ती दौरे के बीच में डबल कॉलम बॉक्स में छपी। कंडोम बाबा का उस दिन दिल्ली लौटना स्थगित हो गया, शाम को वह अंग्रेजी में लिखा साढ़े तीन पेज का खंडन लेकर अखबार के दफ्तर पहुंचे और वहां सी. अंतरात्मा को बैठे देखकर उनकी चीख निकल गई। वह संपादक से झगड़ने लगे कि उनका अखबार पीत-पत्रकारिता कर रहा है। खंडन में लिखा था कि आदर, आतिथ्य और सत्कार के लिए वे जिला प्रशासन व सर्किट हाउस के कर्मचारियों के आभारी हैं। तौलिए का किस्सा पूरी तरह मनगढ़ंत है। किसी रिपोर्टर ने इस बारे में उनसे बात तक नहीं की है। अखबार यह सब जिला प्रशासन की छवि बिगाड़ने के लिए कर रहा है। दरअसल जिलाधिकारी ने कंडोम बाबा को बुलाकर कह दिया था कि वे या तो तुरंत इस खबर का खंडन छपवांए या फिर अगली बार से अपने ठहरने का कोई और ठिकाना ढूढ़ लें। कंडोम बाबा का खंडन रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। क्योंकि पता था कि उन्हें रात में दिल्ली जाना ही जाना है और उनके दर्शन फिर कब होंगे कोई नहीं जानता।

असाइनमेंट के बीच मे ही प्रकाश पार्लर पहुंचा और छवि को लगभग घसीटते हुए बाथरूम में ले जाकर उसे प्रेगनेन्सी के होम टेस्ट की किट थमा कर दरवाजा धड़ाक से बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद छवि ने उसे दिखाया कि इंडीकेटर साफ बता रहा था कि वह सच बोल रही थी। वह पूछना चाहता था कि तुम्हें उस लड़की के बलात्कार की बात कैसे पता चली लेकिन मुंह से निकला, कब पता चला। छवि ने उसे छुआ तो वह कांप रहा था उसने कहा, तुम्हारा तो वह हाल हो रहा है जो, मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं, का भयानक डॉयलाग सुनते ही पुरानी फिल्मों के हीरो का हुआ करता था।

अब शादी के बारे सोचना होगा जल्दी कुछ करना पड़ेगा, उसका मुंह सूख रहा था। क्योंकि भीतर लू चल रही थी।

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