सफरनामा

17 अप्रैल, 2010

मारो माओवादियों को..

मैं गृहमंत्री पी.चिदंबरम और उन तमाम विद्वानों की राय से पूरी तरह सहमत हूं जो माओवाद नाम की बीमारी से देश को मुक्त कराने के लिए कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने के हक में हैं। बल्कि, मैं तो कहता हूं कि जमीन पर तोपें तैनात की जाएं और हवा में लड़ाकू विमान..ताकि माओवादियों पर ऐसी बमबारी हो कि उनके चिथड़े भी न बीने जा सकें।

दिल तो ये भी कहता है कि दंडकारण्य के जंगलों में परमाणु बम भी छोड़ना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिए। आखिर देश कब तक इन अराजक, हिंसक लोगों को बरदाश्त कर सकता है। इसके साथ ही आदिवासियों का सवाल उठाकर माओवादियों की हिमयात करने वालों को भी जेल में डाल दिया जाना चाहिए। इस लिस्ट में पहला नाम अरुंधति राय का होना चाहिए। ये घटिया राइटर और पिटी हुई एक्टर, जब से माओवादी हत्यारों के साथ फोटो खिंचाकर आई है, अपने को बड़ा काबिल समझने लगी है। बताइए भला..हिंसा का समर्थन कर रही है..। ऐसे बुद्धिजीवी देश को अस्थिर करने वाली साजिश में शामिल हैं और यूपीए सरकार को उनके खिलाफ यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रेवेन्शन एक्ट) का तुरंत इस्तेमाल करना चाहिए।

मैं ये बात मानने को तैयार नहीं हूं कि माओवादियों को आदिवासियों का समर्थन है। मुझे लगता है कि माओवादियों को आईएसआई ने हथियार दिए हैं जिनके बल पर उन्होंने आदिवासियों को बंधक बना लिया है। हो न हो, नेपाल के माओवादी भी उनकी मदद के लिए आ गए हैं। नेपाल में तो फिलहाल उनके पास कोई काम है नहीं, तो पशुपति से तिरुपति तक लाल गलियारा बनवाने में जुट गए हैं।

मुझे पूरा भरोसा है कि जब देश का पक्ष,विपक्ष, मीडिया, सब एक सुर में माओवाद के खिलाफ बोल रहे हैं तो उन्हें कुचलने में कोई खास मुश्किल नहीं आएगी। इस नासूर से देश को मुक्त कराना ही होगा। जल्द से जल्द..

फिर? फिर क्या....देश चैन की सांस लेगा..और सरकार एलान करेगी कि गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाली देश की 37 फीसदी आबादी की बदहाली दूर करना उसकी प्राथमिकता होगी...किसी भी वनवासी या आदिवासी को उनकी जमीन से उजाड़ा नहीं जाएगा। जल, जंगल और जमीन पर उनका सदियों पुराना हक बना रहेगा। इन इलाकों में घुस आईं तमाम बहुराष्ट्रीय खनन कंपनियों को बाहर किया जाएगा ताकि जंगल और पर्यावरण की रक्षा हो सके। सरकार उनके साथ हुए करार यानी एमओयू को सार्वजनिक करेगी। बहुत जरूरी होने पर ही किसी को उसकी जगह से हटाया जाएगा..और विकास का पहला पत्थर तभी लगेगा जब उजाड़े गए लोगों का घर बन जाएगा। यही नहीं..गंगा-यमुना सहित तमाम नदियों को बचाने के लिए बड़े बांधों की नीति बदली जाएगी। सरकार जनता की, जनता द्वारा और जनता के लिए होगी...और जनता का मतलब देश की 90फीसदी आबादी से होगा। यानी सरकार अंतिम आदमी के लिए होगी....

क्या कहा..? मैं माओवादियों की तरह बात कर रहा हूं...मजाक छोड़िए जनाब..उन्हें तो खत्म किया जा चुका है...मैं खुद इसके हक में नारे लगा रहा था...हटो..हटो...अरे दरोगा जी..क्या कर रहो हो...क्या?.. मुझ पर यूएपीए लग गया है...अरे मैं तो अंतिम आदमी की बात कर रहा था,...अरे कोई इन्हें समझाओ..अंतिम आदमी वाली बात माओ ने नहीं, गांधी ने कही थी....अरे, कोई है...।