सफरनामा

19 जून, 2011

प्रातः स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्वं



आजकल हिमालय में घूमने के साथ ध्यान की बंबा घेर क्लास (गदहिया गोलः गांव के स्कूलों की नर्सरी)चल रही है। सनातन पद्धति वाली कक्षा तीन दिन हो चुकी। आज बस थोड़ी देर बाद एक विपश्यना ध्यान केन्द्र में भरती हो जाऊंगा। शाम को संकल्प फिर दस दिनों तक बौद्ध पद्धति का मौन। संकेतों से भी बात नहीं करने के निर्देश हैं। बहुत दिनों से सोच रहा था कि झांक कर देखा जाए अंदर क्या है। लौटकर आप सबसे साझा करूंगा।

10 जून, 2011

मददः हुसैन के कदमों का खालीपन

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आज मकबूल फिदा हुसैन चले गए।
2022 के जाड़े में एक पूरा दिन मैने हुसैन के साथ बनारस मे बिताया था। भोर से लेकर रात तक। उनके साथ उनकी एक सुंदर दोस्त भी थी जिसने उनकी आत्मकथा की खुशखती की है। उसी दोस्त की हस्तलिपि में वह किताब छपी है। चाय में डुबा के नई सड़क या दालमंडी में हम दोनों ने रूमाली रोटी खाई थी। कहीं फोटो भी छपा था। लौट कर हिन्दुस्तान मे मैने एक राइट अप लिखा था
'आखिरी दो कदमों का खालीपन।' तलाश रहा हूं लेकिन अब कोई पुरानी क्लिपिंग मेरे पास अब नहीं है। अगर किसी मित्र के पास हो तो कृपया मेल करें। उसे यहां लगाना चाहता हूं।