सफरनामा

02 अगस्त, 2010

दिमाग में कर्फ्यू न लगा हो तो...


माफी मांगो विभूति नारायण।

कठहुज्जती मत करो। लीपने से दायरा और फैलेगा।

साथ ही हिंदी के उन सब काम-कुंठा के मारे वरिष्ठ जोकरों के नाम लो जो लेखिकाओं में छिनालों की खोज करते हैं और उन्हीं से मुखातिब रहते हैं।

अपने अहंकार की चिन्ता मत करो। अगले एक पखवारे तक- ठीक वैसे जैसे पुलिस करती है- उसका मुन्डन होगा, चूना पोता जाएगा और जुलूस निकाला जाएगा। फिर इन जुलूसों की स्मृति सारी उमर परेशान करती रहेगी। ठीक यही रहेगा कि मजबूर होकर मांगने के बजाय खुद पहल करके मांग लो।

कुलपति-फुलपति होने की चिंता भी छोड़ दो। आजकल कुलपति केंद्र से फंड लाकर विवि में वेतन बंटवाने अलावा करता भी क्या है। जिनके लिए कुलपति करता है वे भी कहां काम आते हैं। उनमें रीढ़ की हड्डी कहां होती है।

20 टिप्‍पणियां:

  1. चलिए सीधे कोई मुखातिब तो हुआ जनाब से.

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  2. में फिक्र को धुएं में उडाता चला गया ....

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  3. साथ ही हिंदी के उन सब काम-कुंठा के मारे वरिष्ठ जोकरों के नाम लो जो लेखिकाओं में छिनालों की खोज करते हैं और उन्हीं से मुखातिब रहते हैं।

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  4. वैसे, ताजा खबर ये है कि गर्दन फंसती देख, विभूति राय ने माफी मांग ली है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल से मुलाकात करके उन्होंने माफी मांगकर अपनी जान छुड़ाने की कोशिश की है। उधर, शुरू में विभूति को पीछे से डटे रहो-डटे रहो कहने वाले रवींद्र कालिया मसले को नया मोड़ देने में लगे हैं। एक अखबार में कालिया के हवाले से छपा है कि उन्हें प्रकरण पर खेद है। इतना ही नहीं, वो ये भी कह रहे हैं कि विभूति ने छिनाल शब्द कहा ही नहीं था। शायद ये साक्षात्कराकर्ता की गलती से हुआ है। वे गोवा से लौटकर मामले को देखेंगे (इन दिनों वे नामवर सिंह के साथ गोवा में व्यस्त हैं)..

    अगर अखबार में छपी ये खबर सही है, तो समझना चाहिए कि हम कितने घटिया समय में रह रहे हैं। विभूति ने स्टार न्यूज की बैठक में छिनाल को छिन्न-नाल यानी मूल से भटके लोगों के रूप में व्याख्यायित करने का प्रयास किया था। अगर उन्होंने नहीं कहा था तो इस व्याख्या की जरूरत क्या थी। निंदनीय...घोर निंदनीय...

    वैसे विभूति प्रकरण के जरिये कुछ लोग नए-पुराने हिसाब भी चुकता करने में जुट गए हैं और विरोध निंदा के स्तर को स्केल से नापने में जुट गए हैं। ये समस्या का दूसरा पहलू है। अब जन सरोकार का दावा वही करे जो विभूति की मां-बहन करे...केवल माफी मांगने और बयान वापस लेने की मांग करना तो उनका समर्थन करना ही है। क्या खूब.....

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  5. श्रीमान जी, इन महान लेखिकाओं ने कभी व्‍यापक स्‍त्री मजदूरों से जुड़े किसी मसले को उठाया है, रोजमर्रा की फैक्‍ट्री लाइफ में स्त्रियों को कैसा अपमान झेलना पड़ता है इसका तो इन्‍हें ख्‍याल भी कभी नहीं आता।
    इन सरोकारविहीन मध्‍यवर्गीय नारियों का पक्ष लेकर आप क्‍या साबित कर रहे हैं।

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  6. Kya mahan tark hai. matlab madhyvargeey nariyon ka charitrhanan mahan pratibaddh kaam hai. sharmnak

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  7. @पंकज श्रीवास्तव
    जो अल्पबुद्धि हैं उनका सस्ती भाषा,सोच और पोस्ट पर मुझे कोई टिप्पणी नहीं देनी थी। लेकिन.....

    आपके कमेंट के बाद सिर्फ यही कहुंगा कि आप भी इतने भोेले निकलेंगे उम्मीद नहीं थी। अच्छा होता कि आपका यह कमेंट नहीं पढ़ता। बुर्जूआ नैतिकता भी नहीं बचने पाएगी क्या ?? हावरड् के प्रेसीडेंट वाल मामला तो आप जानते ही होंगे।

    क्या विभूति नारायण का इस्तीफा वही लोग मांग रहे हैं जिन्हे उससे हिसाब चुकता करना है। आपके कमेंट से जाहिर है कि आपको समझ में आ रहा है कि विभूति नारायण की माफी एक नाटक से ज्यादा कुछ नहीं। आप को क्यों नहीं लगता कि सार्वजनिक जीवन में जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों के लिए विभूति नारायण के इस्तीफा/बर्खास्तगी से नजीर कायम करना जरूरी है।

    खैर,दोस्ती तो आपने निभा ही दी।

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  8. @रंगनाथ सिंह
    भाई मेरे, आपके कमेंट के जवाब में मैं चुप रह जाना पसंद करता अगर आपने यह न लिखा होता कि मैंने दोस्ती निभा दी है।

    पहली बात तो न मैं विभूति का दोस्त हूं और न ही मुझे कोई दोस्ती निभानी है। आपको शायद पता होगा कि अनिल चमड़िया प्रकरण या म.गां.हिं.वि.वि. में दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर पर विभूति के खिलाफ जितने निंदा प्रस्ताव वगैरह पारित हुए थे, उसमें मैंने सहर्ष दस्तखत किए थे। इस बात की तस्दीक तो आप अनिल चमड़िया से भी कर सकते हैं कि मैं विदर्भ पर एक रिपोर्ट तैयार करने के सिलसिले में वर्धा गया था तो विभूति से मिलने भी नहीं गया। अनिल के साथ ही घूमता रहा, जबकि परिसर में विभूति मौजूद थे। इसलिए मेरी टिप्पणी को किसी दोस्ती का नतीजा बताना तथ्यात्मक गलती है, बाकी आपकी मर्जी।

    विभूति को बरखास्त करने की मांग का मैं समर्थन करता हूं। इस मांग में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन जिस तरह से इस प्रकरण के बहाने जसम और प्रणय कृष्ण के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, वो जरूर शोचनीय है। एक संगठन के रूप में जसम ने सबसे पहले माफी की मांग की थी, लेकिन उसे जिस तरह से नाकाफी बताते हुए प्रणय के वर्धा जाने और रामजी राय की प्रस्तावित वर्धा यात्रा से जोड़ा गया, वो संदेह पैदा करता है।

    सभ्य समाज में गाली देने वाले से पहले माफी मांगने को ही कहा जाता है। फिर चाहे वो वीसी हो या नहीं। विभूति को वीसी पद से हटाने का अभियान चले, इसके लिए पहले भी कम मामले नहीं थे। कम से कम आंदोलनकारी दलित छात्रों और प्रोफेसर को नोटिस भेजने जैसे तथ्य ही काफी थे।

    आप कह सकते हैं कि मैं जसम और प्रणय से दोस्ती निभा रहा हूं। तो मित्र ये दोस्ती साथ-साथ पुलिस की लाठियां खाकर खून बहाने के दौरान विकसित हुई थी। रही बात विभूति की तो वे हमेशा पुलिसिया वर्दी में सत्ता के खेमे में थे।

    वैसे मुझे आपके इरादों पर कोई शक नहीं है। ऐसी बहसों से हम समृद्ध ही होते हैं, गर कोई पूर्वग्रह न हो।

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  9. पंकज जी,

    आपने जो बातें पहले कही हैं उन्हीं बातों के संदर्भ में मैंने कहा है कि मुझे आपका कमेंट देखकर आश्चर्य हुआ। रही प्रणय जी की बात तो इस संदर्भ में भी आपसे सहमत हूं। जिस रवैए पर आप आपत्ति जता रहे हैं उसके बारे में मैं यही कहुंगा कि मैंने न ऐसा कभी किया है, और न आगे ऐसा करने की संभावना है। व्यक्तिवादी होकर लिखने के छिछलेपन पर मेरा कोई विश्वास नहीं है।

    प्रणय जी ने जो स्टैण्ड लिया है वह नाकाफी और लचीला है। जिसका विरोध करना मैं जरूरी समझता हूं।

    दोस्ती की बात मैंने जसम या प्रणय जी के बारे में नहीं कही थी। वह मैंने आपके इस ब्लाग के सह-लेखक के संदर्भ में कही थी।

    फिर से स्पष्ट कर दूं कि आपकी नीयत पर मुझे कोई शक/पूर्वाग्रह नहीं।

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  10. शायद यह कहना भी जरूरी है कि, अनिल चमड़िया से तो मैं आज तक मिला भी नहीं हूं। न ही कोई जान-पहचान है। अविनाश से भी मेरा कोई दोस्ताना नहीं है। न विभूति नारायण से दुश्मनी है। न मैं किसी व्यक्ति,संस्था,वेबसाइट के लिए प्रायोजित लेख लिखता हूं।

    आपने मेरे इरादे के प्रति सदाशयता दिखायी है फिर भी यह लिख रहा हूं क्योंकि दूसरे कई कपटी हैं जो यही सब जानने के लिए दिन-रात फोन घुमाते रहते हैं। जरूरी है कि उनके पास मेरा लिखित बयान रहे।

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  11. यह सारी बहस मूल मुद्दे से भटकी हुई है और कारण ये रहे :
    आज के दौर में साहित्ये में वरीयता किस तरहर के कथ्य को मिलनी चाहिए, आम जनता, मोटे तौर पर मजदूर तबके की रोजमर्रा की जद्दोजहद को या निहायत जाती जिंदगी के यौन-व्यूवहार की तफसीलों को।
    लेखक को उसके देश-काल में अवस्थित करके लेनिन ने टॉलस्टा्य का जो मूल्यांजकन प्रस्तुतत किया है उसके अनुसार कला के स्तीर पर टॉलस्टासय महान यथार्थवादी लेखक थे लेकिन विचारों के अनुसार प्रतिगामी मूल्योंॉ के पक्षधर। पर यहां तो यथार्थवादी लेखन ही सिरे से अनुपस्थित है असल प्रगतिशील मुद्दों का तो कहना ही क्याा। दोस्तो , इतिहास विकास की गतिकी को समझने के लिए आज यह बेहद जरूरी हो गया है कि संशोधनवाद नामक शब्दस के अर्थ को भलीभांति समझा जाये और ऐसा किये बिना सोशल डेमोक्रेसी के दलदल में गिरने से रोका नहीं जा सकता। लेकिन, बदकिस्म्ती से ऐसा ही हो रहा है और असल मसले सिरे से ही गायब हैं। उपर्युक्ते प्रकरण में जिस तरह की हलचल ''विद्वत'' समाज में देखी गयी उससे एक बार फिर यह साबित हो गया चंहु ओर सामाजिक जनवाद का घटाटोप है और साहित्यख में इतिहास को विकास की अगली मंजिल में ले जाने वाली शक्तियां गैर-हाजिर हैं।

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  12. Wah, kamta prasad wah, kya wakel hain ap! pahle apne sarokarvihen madhyvargey mahilaon ki beizzati karne ko jayaj tharaya ab ap kranti ka bigul foonk rah hain. `mahan vyakhya ke gart men mudde` ko aur khud ko bhi dubo khud rahe hain. shukriya

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  13. @ रंगनाथ सिंह..भाई, मैं ब्लाग नहीं देख सका था, इसलिए जवाब नहीं दे पाया था। अपने बारे में आपने जो कहा, उस पर मुझे पूरा यकीन है। कपटी लोगों की दाल इसलिए नहीं गलेगी क्योंकि उन्हें जिस पारदर्शिता से सबसे ज्यादा परेशानी होती है, मैं उसी का शैदाई हूं।

    वैसे, अब तक आप भी समझ गए होंगे कि विभूति प्रकरण के बहाने कहां-कहां निशाना साधा जा रहा है। प्रणय या जसम का रुख जिनकी नजर में लचीला है, वो उसे बदलकर कठोर करने की मांग करें, इसमें क्या गलत...लेकिन उन्हें विभूति का समर्थक बताने का अभियान चलाना कहां तक सही है।
    क्या किसी हत्यारे के लिए आजीवन कारावास की मांग करना, उसका साथ देना है। लेकिन फांसी की मांग करने वाले यही कह रहे हैं। और सारी ताकत उनके खिलाफ झोंक रहे हैं जिन्होंने आजीवन कारावास ही मांगी थी। क्या आपको ये सब सहज लगता है।
    हद तो ये है कि विभूति को उस जसम की सदस्यता से बाहर करने की मांग हो रही है, जिसकी उन्हें कभी सदस्यता ही नहीं दी गई। (हो सकता है कि उन्होंने मांगी ही न हो, लेकिन तथ्य यही है कि वे सदस्य नहीं हैं।) मैं जसम को स्थापना काल से देख रहा हूं, इसलिए ये बात दावे से कह रहा हूं। यही नहीं, बात प्रणय की पत्नी के वर्धा विश्वविद्यालय से जुड़े होने की बात हो रही है, जबकि वे इस प्रकरण से काफी पहले ही कहीं और पढ़ा रही हैं। वैसे, बेरोजगारी के दिनों में अगर कोई शोधार्थी किसी प्रोजेक्ट से जुड़ता है या विश्वविद्यालय में कुछ दिन क्लास लेता है, तो उसे क्या वीसी के अपराधों का साझीदार बता दिया जाएगा। फिर तो सभी शिक्षक और उन छात्रों को भी अपराधी बताया जा सकता है, जो वहां पढ़ते हैं।
    आभासी दुनिया के क्रांतिकारियों की ये अजब शर्त हैं कि जो उनके निर्धारित सुर से ऊपर या नीचे रहेगा, वो जनविरोधी होगा।

    @ कामतानाथ...भाई, आपकी निगाह में जो सरोकारहीन हैं क्या उन महिलाओं को अपमानित करने का हक है किसी को। मेरा ख्याल है आप ये नहीं कह रहे होंगे। आपकी चिंता ये है कि जब मजदूरों, किसानों और आदिवासियों की मजबूरियों पर बहस होनी चाहिए तो बुद्धीजीवियों और साहित्यकारों के बीच ऐसी बहस चल रही है, जिसे शायद आप गैरजरूरी समझते हैं। दुनिया को इस नजर से देखना आपका हक है भाई।

    पर शायद आप ब्लाग जगत से कुछ ज्याद ही उम्मीद कर बैठे हैं। ये आम आदमी को वैश्विक मंच देने के लिहाज से क्रांतिकारी माध्यम हो सकता है, लेकिन इसका निर्माण क्रांति के लिए नहीं हुआ है। यहां टिप्णी करने से लेकर गाली-गलौच तक बेहद सुविधापूर्ण ढंग से की जा सकती है। आप चाहे पड़ोसी का दरवाजा भी न झांकते हों, लेकिन दुनिया भर के लोगों के सुख-दुख में शामिल होने का भरम बना सकते हैं। क्रांति की शक्तियां इस आभासी जगत से नहीं निकलेंगी मित्र। ये भगोड़ों का उल्लास मंच है जो क्रांति के नाम पर किलोल भर कर सकते हैं।

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  14. Pankaj Bhai, Kamta Prasad jo kah rahe hain, wo apattijanak hai. wo `asal` men kya kahna chah rahe hain, yh apne bata diya. achraj hua. dhanyvad.
    apki is bat men koii shak nahi hai ki mudde se hatkar bhi apattijanak baten kee ja rahee hain aur har kisi par keechad uchhala ja rha hai.

    phir bhi ek seedhee mang karne walon ko vyaktigat swarthi kahna bhi har kisi ke sath anyay hai.
    Pankaj bhaii, shayad apko yakeen ho ki main apse koii dusht bahas nahi kar raha hoon aur ap par shak bhi nahi kar raha hoon. Kamta Prasad ka tark apattijanak hai aur lambe samy se is tark ki aad men kafi ghapla hota raha hai.

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  15. धीरेश भाई..मैंने कामतानाथ की बात पर आपत्ति जताई है। उन्होंने गलत कहा है। चूंकि मैं उनकी चिंताओं को निजी तौर पर थोड़ा जानता हूं, इसलिए शायद आपको ये उदारता दिख रही है। आप इसे कमजोरी भी कह सकते हैं।
    मुझे न आपके इरादों पर शक है और न आपको मुझ पर शक हो सकता है। आप अगर ध्यान दें तो इसी बहस में पहले मैं साफ कह चुका हूं कि विभूति को बर्खास्त करने की मांग का मैं समर्थन करता हूं। ऐसी मांग करने वालों में बहुतेरे ऐसे हैं जिनके इरादों पर मैं सपने में भी शक नहीं कर सकता। लेकन क्या आप इनक्रार करेंगे कि कुछ लोग इस बहाने जसम और प्रणय से हिसाब बराबर करना चाहते हैं। हद तो ये है कि विभूति को जसम से निकाले जाने की मांग कर रहे हैं जबकि वो कभी भी इस संगठन के सदस्य नहीं रहे।
    जसम ने तो सबसे पहले मांग की थी कि विभूति माफी मांगें। ऐसी कोई टिप्पणी मेरे संज्ञान में नहीं है कि जसम ने बरखास्तगी की मांग का विरोध किया है। बल्कि इस मांगपत्र पर दस्तखत करने वाले ऐसे तमाम लोग हैं जिनका जसम से सीधा संबंध है। जैसे बरखास्तगी की मांग करने वाले सभी लोग इस षड़यंत्र में शामिल नहीं हैं, वैसे ही सिर्फ माफी तक बयान को महदूद रहने वाले भी विभूति के एजेंट नहीं है। बात इतनी सी है।
    मैंने देखा है कि आपने इस मांग को वापस लेने की मांग करने वाले बोधिसत्व से सम्मानजक तरीके से असहमति जताई है। लेकिन वहीं कुछ लोग उनकी पत्नी और बेटी तक पहुंच गए हैं। ऐसे लोग विभूति से कैसे अलग हैं। इस फर्क को समझना और समझाना जरूरी है।

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  16. पंकजी जी, हम ज्यादातर बातों पर एकमत हैं। हां,यह जरूर कहना चाहुंगा कि इस्तीफा/बर्खास्तगी के लिए फांसी की उपमा देना अनुचति है। विभूति नारायण का इस्तीफा देना फांसी के बराबर तो नहीं ही है। आपने देखा ही होगा कि जसम वाया प्रणय जी के मार्मिक अपील के बाद भी विभूति नारायण ने लेखक के रूप में अपने बयान की रक्षा की है। वीसी के तौर पर मजबूरन माफीनामा दिया है।

    यह भी गौरतलब है कि हिन्दी में तीन ही लेखिकाओं की आत्मकथा आई है- प्रभा खेतान,मन्नू भण्डारी और मैत्रेयी पुष्पा। वीएन राय ने अपना बयान किसको निशाने पर रखकर दिया है अब वही बता सकते हैं। हम तो अनुमान ही लगा सकते हैं।

    हिन्दी के ऐसे ही तथाकथित साहित्यकारों ने लेखक की छवि एक कामुक,लम्पट,दगाबाज,निकृष्ट,परजीवी की बना दी है। ऐसे ही लोगों से मुखातिब होकर मन्नू भण्डारी ने कर्तूते मर्दां लिखा था। बहुत खूब लिखा था।

    रही वीएन राय को जसम से निकलाने के बात, तो कम से कम मुझे तो यह मालूम ही है कि विभूति 'तकनीकी' तौर पर जसम के सदस्य नहीं है।

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  17. आदरणीय,माननीय,सम्माननीय और जितने भी नीय हों......बोधिसत्व के बारे में आपके उदार वचन को लेकर बस यही कहना चाहुंगा कि महाकवि वीएन राय के आपत्तिजनक बयान के विरोध में कभी नहीं प्रकट हुए। उनके बयान के विरोध के विरोध में तत्काल सतह पर उतरा गए !!

    जो उनको जलील कर रहे हैं उनका तरीका सरासर गलत है। लेकिन महाकवि भी कुछ कम नहीं कर गए हैं !!

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  18. कामता प्रसाद जी बहुत ही सम्मान के साथ कहना चाहुंगा कि आपके कहे पर सख्त आपत्ति है। जो मुद्दा सामने है उसे भटकाने के लिए जनआंदोलनों की दुहाई देने लगना आपको किसी निरपेक्ष बिन्दु पर नहीं खड़ा करता। बल्कि वो आपको को संदेह के घेरे में ले आता है।

    किसी मुद्दे पर सीधी दो टुक राय देना या न देना एक राजनीतिक कदम है। व्यक्तिगत ईमानदार हमेशा सही निर्णय तक ले जाएगी यह भी जरूरी नहीं। जैसे, किसी किशोर का एकतरफा प्यार सच्चा तो होता है लेकिन पूरी तरह एक भ्रम पर टिका होता है।

    ब्लाग जगत के बारे में पंकज जी ने जो कहा है उम्मीद है आप उसे भी ध्यान में रखेंगे।

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