सफरनामा

08 फ़रवरी, 2010

वर्णाश्रम की 'मल' संस्कृति!

कलम सुन्न है। शाहरुख और ठाकरे प्रसंग पर चल रहे चमकदार विवाद पर भी कुछ लिखना मुश्किल हो रहा है। दिमाग महीने भर पहले की उसी घटना पर अटका हुआ है जहां से दुनिया बहुत आगे बढ़ गई है। सीने पर धरे इस बोझ को हटाने का यही तरीका है कि देर से ही सही, गुबार निकाल दूं।

बात इसी 2010 की जनवरी की है। ग्लोबल वार्मिंग की बहस को रिकार्ड तोड़ ठंड ने ठंडा कर दिया था। चर्चा बस ये हो रही थी कि गणतंत्र के 60 साल पूरे होने का जश्न कैसे मनाया जाए। ठीक इसी वक्त पोंगल की तैयारियों में जुटे तमिलनाडु के एक दलित नौजवान को उस हैरतनाक हकीकत से रूबरू होना पड़ा,जिसने उसके लिए गणतंत्र और संविधान को बेमानी बना दिया।

डिंडीगुल जिले के बाटलागुंडु थाना क्षेत्र में है गांव मेलाकोइलपट्टी। दलित नौजवान पी.सादियान्दी, उम्र 24 साल, इसी गांव का है। पोंगल की तैयारियां जोरों पर थीं। सादियान्दी भी घर की साफ-सफाई और चमकाने में जुटा था। 7 जनवरी को वो पुताई के लिए चूना खरीदने करीब के कस्बे जा रहा था कि रास्ते में सात थेवर नौजवानों ने उसे घेर लिया। उन्होंने सादियान्दी के साथ गालीगलौच की। उसकी पिटाई की। फिर दो लोगों ने जबरदस्ती उसका मुंह खोला और तीसरे ने एक छड़ी से उठाकर मानव मल उसके मुंह में डाल दिया। इतना ही नहीं, उसके मुंह पर भी मल पो त दिया गया। सादियान्दी ने किसी तरह पास के एक तालाब में कूदकर जान बचाई।

अपराध? सादियान्दी का अपराध सिर्फ ये था कि वो पांव में जूते पहनता है। जबकि दलितों की पिछली पीढ़ी ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। जाहिर है, सादियान्दी गांव में पीढ़ियों से चले आ रहे एक कानून को तोड़ रहा था। थेवर नौजवानों को यही 'दुस्साहस' बरदाश्त नहीं हुआ।

ठहरिये..इस घृणित दास्तान को किसी पुराने चश्मे से न देखिए। कहानी में एक पेच है। जिन थेवर नौजवानों ने ऐसा किया, वो हिंदू नहीं हैं। वे धर्म बदलकर ईसाई हो चुके हैं। लेकिन उनका सवर्ण आतंकी दिमाग, प्रभु यीशू के दरबार में भी सक्रिय है। सादियान्दी के अपराध को देखकर वे करुणा, प्रेम, दया के सारे उपदेश भुला बैठे।


थेवर दक्षिण की एक लड़ाकू जाति मानी जाती है। वे अपने को क्षत्रिय कहते हैं, और एक दौर में दक्षिण कई रिसायतें थेवर लड़ाकों के बाहुबल पर ही खड़ी हुई थीं। फिलहाल, इस इलाके के तमाम थेवर जन 'तरक्की' की ख्वाहिश लिए ईसाई हो चुके हैं। लेकिन क्षत्रिय होने का दंभ उनमें कूट-कूट कर भरा है। सादियान्दी के साथ जो कुछ हुआ, वो उनके दिलों में भरी इसी घृणा का क्रूर प्रदर्शन था। धर्म बदल लिया पर जाति नहीं बदल सके।


बहरहाल, हमेशा की तरह पुलिस को सादियान्दी की कहानी पर बिलकुल भरोसा नहीं है। उसका कहना है कि पिछले दिसम्बर में क्रिसमस का उत्सव देखने पहुंचे सादियान्दी से इन नौजवानों का हल्का-फुल्का झगड़ा हुआ था। 7 जनवरी की घटना भी उसी की कड़ी थी। लेकिन मानव मल खिलाने की बात पूरी तरह कपोल-कल्पित है। पुलिस के इस रवैये के खिलाफ सादियान्दी ने राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन को प्रतिवेदन भेजा है।

इस पूरे प्रकरण में एक सवाल बेहद परेशान करने वाला है। आखिर, थेवर नौजवानों में दंड देने का ऐसा विचार आया कहां से। दलितों पर अत्याचार की लोमहर्षक कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है। लेकिन जो धर्म बदलने की हद तक चले गए, उनमें घृणा का ऐसा भाव! कहीं उन्हें ग्वांतानामो की जेलों से तो ये प्रेरणा नहीं मिली, जहां दंड के ऐसे ही तरीके ईजाद करके अमेरीकी झंडे की शान बढ़ाई जाती है।


एक बात और ध्यान देने की है। अंग्रेजी अखबारों में तो इस खबर का जिक्र था, लेकिन हिंदी अखबारों से ये लगभग गायब थी। क्या ये संयोग है ? वैसे अंग्रेजी मीडिया ने भी इसे मुद्दा बनाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। पूछा जाना चाहिए कि क्या ये चंडीगढ़ की रुचिका के साथ हुए अन्याय से कम गंभीर मामला था? क्या सादियान्दी को न्याय नहीं मिलना चाहिए। फिर चुप्पी का मतलब क्या है?


वर्णव्यवस्था की इस ताकत के सामने इस्लाम हो या ईसाइयत, सभी दंडवत हैं। लेकिन अफसोसनाक ढंग से इसके खिलाफ लड़ाई को लगभग गैरजरूरी मान लिया गया है। जबकि वर्ण व्यस्था की चक्की मनुष्यता को पीस डालने के सदियों पुराने अभियान पर डटी है। वर्ण श्रेष्ठता का दंभ, आदमी को आदमी नहीं जानवर बना देता है।...माफ कीजिए, ऐसा कहना जानवरों का अपमान है। आपने कब देखा कि किसी जानवर ने दूसरे जानवर को अपना मल खाने पर मजबूर किया?



संत रविदास कह गए हैं----जात-जात में जात है जस केलन कै पात
रैदास न मानुख जुड़ सकै, जब तक जात न जात।

( मेरा ख्याल है कि अब आप मेरी प्रगतिशीलता पर सवाल नहीं उठा सकते। मैंने, देर से ही सही, लेकिन इस मुद्दे पर कलम चलाई....क्या कहा? और कर ही क्या सकता हूं...मतलब? ए मिस्टर....हटो..हटो...हटाओ ये आईना..तेरी तो...)

4 टिप्‍पणियां:

  1. ईसाई हो गये तो क्या मानसिकता तो वही हिन्सक हिन्दुओ की है .और हिन्दु होते ही है............

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  2. Pankaj! harmonium bajana jaruri tha is mude par. aapki pragatishilta ko lekar koi shak-shubaha nahi hai. lekin yeh jarur maniye pragatishil lekhan--sahitya se patrakarita tak
    politically correct angle se grasta hai rahi hai. yeh khabar kapa dene wali hai. aakhir is jati-pati ka anta kaha hain?

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  3. bhayanak hai. ambedkar islam apnana chahte the, par unhen periyar ne rok diya tha. hindustaan men islaam bhi jaativaad ka shikar ho gaya. keral men to shuruaat men hi dalit aur swaran isaaion ke beech sangharsh hua tha. hindi patrkarita jativaad ka pakhaana hai.

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  4. आपकी यह पोस्‍ट जड़ता की जाति शीर्षक से आज दिनांक 15 मार्च 2010 के दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में प्रकाशित हुई है, बधाई। आपका ई मेल पता मिले तो स्‍कैनबिम्‍ब भिजवा देता।

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