सफरनामा

18 फ़रवरी, 2012

अच्छा बच्चाः उन दिनों की चीन्हाखचाई

तोतेः शरारती लड़के खदेड़े गए
कौएः कामकाजी और दुनियादार
मैनाः अंधेरा देख घर की तरफ भागती देहातिन
गौरेयाः भेली खाते कुदकती कोई लड़की

वे ट्रैफिक में रेंगते, तनावग्रस्त
बेडरूमों में पसरे तुंदियलों के देख क्या सोचते होंगे
यही न, मरें साले ये इसी लायक हैं।

सच मानो
मैं चिड़ियों की नजर में अच्छा बनने की कोशिश नहीं कर रहा हूं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये जौनपुर के पत्रकार कैलाश सिंह हैं जो मेरे साथ हरदोई एक गांव में खटियायमान हैं।

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  2. अंगना-कंगना बलमा-सजना रतिया-खटिया बबिता-कबिता...क्या मजे हैं गुरू।

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  3. दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं ....जो बात इस जगह वो कहीं पर नहीं.....जय हो.................

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