सफरनामा

21 मार्च, 2010

निहलानी की आंखों में नैतिकता का पुल

केएनवीएएनपी-15

प्रकाश की हालत उस सांप जैसी हो गई जिसने अपनी औकात से काफी बड़ा मेढक अनजाने में निगल लिया हो, जिसे न वह उगल पा रहा है न पचा पा रहा है। वह दिन में जिला कचहरी के सामने धरने पर बैठे नेताओं के पास बैठकर लनतरानियां सुनता, घर आकर रात में तस्वीरों में उनके चेहरों का मिलान करता। हर दिन उनके बयान पढ़ता और रात में रजिस्ट्री के कागजों पर उनके हलफनामे देखता। स्नेहलता द्विवेदी, डीआईजी के पिता के साथ इस बीच लखनऊ जाकर दो बार मुख्यमंत्री और कई विधायकों से मिल आई थीं। दिन में कई बार गाड़ियों से उतरने वाले सोने की चेनों, पान मसाले के डिब्बों, मोबाइल फोनों से लदे-फंदे लोग उनका हाल पूछ जाया करते थे। प्रशासन की सारी अपीलें ठुकराकर उन्होंने ऐलान कर रखा था कि यह धरना तभी उठेगा जब मड़ुवाडीह की सारी वेश्याएं शहर छोड़कर चली जाएंगी।

टेंट के आगे लगा 'वेश्या हटाओ-काशी बचाओ' का बैनर अब ओस और धूल में लिथड़ कर मटमैला पड़ चुका था। पुआल पर बिछे सफेद रजाई, गद्दों, मसनदों पर मैल जमने लगी थी। रोज पहनाई जाने वाली सूख कर काली पड़ चुकी गेंदे की लटकती मालाओं की झालर बन चुकी थी। गद्दे पर बिखरे लाई चने, पान के पत्तों और मुचड़े हुए अखबारों के बीच, धरना देने वाले अब भी वेश्याओं, ग्राहकों और दलालों के उत्पात के किस्से धारावाहिक सुनाए जा रहे थे। समर्थन देने वाली संस्थाओं के लिए दोपहर बाद का समय तय था। उनके नेताओं के आने के साथ माइक ऑन होता और सभा शुरू हो जाती जो कचहरी बंद होने तक चलती थी। शाम और रात का समय भजन गाने वाले कीर्तनियों के लिए था। वे सभी पूरी तन्यमता से एक पुण्य काम में सहयोग कर रहे थे।

सी. अंतरात्मा ही छवि को खुश कर सकने वाले, प्रकाश के खोजी-पत्रकारिता अभियान में मदद कर सकते थे। उसने चंट फोटोग्राफर की तरह उनकी बरसों पुरानी एक इच्छा पूरी कर दी। वे न जाने कब से कह रहे थे कि प्रकाश उनके मां-बाप की अच्छी सी तस्वीर खींच दे। उसने अंतरात्मा के घर जाकर चुपचाप तस्वीर ही नहीं खींची, एक पेंटर से उसका पोट्रेट बनवाया, अभी पेंट सूखा भी नहीं था कि अखबार में लपेटकर उन्हें भेंट कर दिया। वह खुशी और अचरज से हक्के-बक्के रह गए। उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि उनकी छिपी हुई साध इस तरह पूरी हो जाएगी।

अंतरात्मा, प्रकाश को लेकर शहर के सबसे बड़े बिल्डर और राज्यसभा के सदस्य हरीराम अग्रवाल के पास लेकर गए, जिसको वह अपना दोस्त कहते थे। प्रकाश को यकीन नहीं था कि अंतरात्मा जैसा फटीचर पत्रकार अग्रवाल का इतना करीबी हो सकता है। वह बड़े तपाक से मिला जैसे घिसी पैंट-कमीज वाले अंतरात्मा सिद्धांतों, मूल्यों वाले कोई असफल नेता हों जिनके लिए उसके मन में अपार सहानुभूति है। उसे बताया गया कि अखबार के लिए एक फोटोफीचर करना है जिसकी थीम यह है कि प्रस्तावित निर्माण परियोजना पूरी होने के बाद मड़ुवाडीह का पिछड़ा, बदहाल इलाका कैसा दिखेगा और शहर में क्या-क्या बदलाव आएंगे। अग्रवाल, फौरन दोनों को लेकर निधि कंस्ट्रक्शन कंपनी के एमडी श्रीविलास निहलानी के पास गए जो शहर के एक पांच सितारा होटल में ठहरे हुए थे। कंपनी के चीफ आर्किटेक्ट और जनसंपर्क अधिकारी को भी वहीं बुलवा लिया गया।

उस शाम वह होटल के सबसे शानदार सूट में एक बेड पर लैपटाप, फोनों ब्रीफकेसों और कागजों के ढेर से घिरा शराब पी रहा था। उसके सामने प्लास्टिक की कुर्सियों पर विभिन्न आकार-प्रकार के कारोबारी, बिल्डर, छुटभैये नेता, गुंडे, दलाल विनम्र भाव से बैठे हुए थे। उसका पेट इतना बड़ा था कि लग रहा था, उसके सांवले, विशाल शरीर के बगल में अलग से रखा हुआ है। उस पूरे परिदृश्य में उसकी आंखें विलक्षण थीं। उसकी असाधारण बड़ी आंखों का उजला परदा अति आत्मविश्वास से बुना हुआ था जिस पर आश्वस्ति से निर्मित, भूरी पुतलियां डोल रही थीं। दुनिया के सारे रहस्यों को वह जान चुका था, शायद इसीलिए किसी भी बात पर उसकी आंखें झपकती नहीं थी और न ही उनमें विस्मय का हल्का सा भी भाव आने पाता था।

अग्रवाल के आते ही उसने आर्किटेक्ट और पीआरओ को इशारा किया और मीटिंग चुटकी बजाते निपटा दी। सामने बैठे लोगों से उसने कहा, उस गांव में जिन लोगों के बड़े प्लाट हैं, उनका रेट थोड़ा बढ़ा दो। उन्हें लगाओ कि बाकी लोगों को समझाएं। फिर भी नहीं समझते तो छोड़ दो, उस गांव को भूल जाओ। हमारे पास अभी छह महीने का टाइम है। दो महीने बाद उस जमीन के सरकारी अधिग्रहण का कागज निकलवा देंगे। सरकारी रेट और सर्किल रेट दोनों हमारे रेट से कम है। थोड़ा जिंदाबाद-मुर्दाबाद होगा और पुलिस डंडा चलाएगी तो अपने आप अक्ल ठिकाने आ जाएगी। वे अपने खेत अपने हाथ में उठाकर ले आएंगे और हमें दे देंगे।

जनसंपर्क अधिकारी उन्हें दूसरे कमरे में ले गया, जहां मेज पर बेयरे खाने-पीने का सामान लगा रहे थे। सांसद अग्रवाल ने कहा, कुछ लेते रहिए, बातचीत भी चलती रहेगी, निहलानी जी व्यस्त आदमी है।

सी. अंतरात्मा लपककर उठे और प्रकाश के कान में कहा, ‘वही वाली पिया जाएगा। जो यह पी रहा था। व्हिस्की से सबेरे पेट भी बढ़िया साफ होगा।’

निहलानी कुर्सी में नहीं अट पाता था। अपना गिलास लिए बिस्तर में धंसते हुए बोला, इस शहर में सिटी प्लानिंग का हम नया युग शुरू करने जा रहे हैं, पुराने के ठीक बगल में नया शहर होगा जहां दुनिया के किसी भी अच्छे मेट्रो जैसी सुविधाएं होंगी। दुनिया पुराना बनारस देखने आती है लेकिन यहां के लोग इंच और सेंटीमीटर में नापी जाने वाली पतली गलियों में, टेंट में रुपया दबाए घुट रहे हैं। हम उन्हें नए खुले और मार्डन शहर में ले आएंगे। वह हंसा...कहिए अग्रवाल जी यह कबीर दास की उल्टी बानी कैसी रहेगी।

बहुत सुंदर, बहुत सुंदर! अग्रवाल ने गिलास रखते हुए भावभीने ढंग से कहा जैसे उनका गला रुंध गया हो। खंखार कर बोले, अब देखिए भगवान की कृपा रही, डीआईजी साहब और अंतरात्मा जी ने चाहा तो दो महीने में आखिरी समस्या भी खत्म हो जाएगी। उसके बाद रोड क्लीयर है।

निहलानी हंसा, डीआईजी तो धर्मात्मा आदमी है साईं, तपस्या कर रहा है। बस अंतरात्मा जी के भाई बंदों की कृपा बनी रहे तो गाड़ी निकल जाएगी। मैंने तो इनके लिए एक पर एक फ्री का ऑफऱ सोच रखा है। एक मकान के बदले एक दुकान और एक फ्लैट ले जाओ। ऐश करो। वैसे भी हमारी स्कीम है कि जब बुकिंग होगी तो हम पुलिस, प्रेस और वकीलों का खास ख्याल रखेंगे। पत्रकार संघ से बात हुई है। अगर उन्होंने पैसा इकट्ठा कर लिया तो हम पत्रकारों के लिए अलग एक ब्लाक दे देंगे, उसमें कोई समस्या नहीं है।

अग्रवाल जी ने अंतरात्मा का कंधा थपथपाया, हमारे तो डीआईजी यही हैं, इन्होंने भी कम प्रयास नहीं किया है। अंतरात्मा की पकी दाढ़ी में मेधावी स्कूली छात्र जैसी मुस्कान फैल गई।

निहलानी के संकेत पर आर्किटेक्ट ने मेज पर नक्शा फैला दिया। अर्धचंद्राकार घेरे में ग्यारह-ग्यारह मंजिल के तीन आवासीय काम्प्लेक्स बनने थे। जिनके बीच फैले सड़कों के जाल के धागों के इधर-उधर मार्केटिंग काम्प्लेक्स, पार्किंग जोन, स्टेडियम, सिनेमाहाल, पेट्रोल पंप, स्विमिंग पूल, पार्क, कम्युनिटी सेंटर, सिक्योरिटी आफिस छितरे हुए थे। लाल नीले रंग निशानों से भरे स्केच में प्रकाश अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था कि इसमें बदनाम बस्ती वाली जगह कहां है।

आर्किटेक्ट, अचानक नक्शा समेटने लगा तो प्रकाश ने हड़बड़ाकर पूछा, अगर वेश्याएं मड़ुंवाडीह से नहीं हटती है, तब आपके प्रोजेक्ट का क्या होगा? निहलानी ने आश्वस्त भाव से कहा, नहीं हटेंगीं तो प्रोजेक्ट रुक थोड़े जाएगा बल्कि और शानदार हो जाएगा। उसने आर्किटेक्ट को इशारा किया, इन्हें मॉरेलिटी ब्रिज दिखाओ।

आर्किटेक्ट ने अब दूसरा स्केच खोलकर मेज पर फैला दिया। अर्धचंद्र के दोनों छोरों पर बनी बहुमंजिली इमारतों को एक ओवर ब्रिज से जोड़ दिया गया था। जिसके नीचे, ठीक बीच में बदनाम बस्ती थी।

आर्किटेक्ट समाचार वाचक की तरह बोलने लगा, यह नैतिकता सेतु पांच सौ मीटर चौड़ा होगा। जिसके बीच फाइबर ग्लास के ट्रांसपैरेंट स्लैब होंगे। यहां कारें आसानी से पहुंच सकेंगी। नीचे हैलोजन लाइटस होंगी, जिससे नीचे, जमींन की सारी चीजें रात में भी साफ नजर आएंगी। एक बंगीजंपिंग का प्लेटफार्म होगा और भी बहुत कुछ होगा। इस ब्रिज का इस्तेमाल मनोरंजन, सैर सपाटे लेकर निगरानी तक के लिए किया जाएगा और वहां पर...

उसे रोककर निहलानी ने बताना शुरू किया। एक एजेंसी से बात हो गई है जो लोगों को किराए पर हर दिन दूरबीनें देगी और सुरक्षा का इंतजाम देखेगी। आइडिया यह है कि वहां घूमने आने वाले लोग टिकट लेकर नीचे वेश्याओं को घूमते, ग्राहकों को पटाते और वहां चलता सारा कारोबार देख सकेंगे। इससे बड़ा मनोरंजन और क्या हो सकता है। पुलिस पेट्रोल और निगरानी के लिए खास इंतजाम होगा। पुलिस वहां से अवैध कारोबार पर नजर रखेगी, अपराधियों को पहचानेगी। इससे क्राइम कंट्रोल करने में भी काफी मदद मिलेगी। यह भी हो सकता है कि इससे बनने वाले मनोवैज्ञानिक दबाव, पहचाने और पकड़े जाने के डर के कारण वहां कस्टमर आना बंद कर दें। जब कारोबार ही ठप हो जाएगा तो वेश्याएं कितने दिन रहेंगी।

प्रकाश को लगा यह मजाक है। अंतरात्मा जो भौंचक, सांस रोके सुन रहे थे, ठठाकर हंस पड़े, ‘जुलुम बात है... यह तो वैसे ही है जैसे बचपन में हम लोग सरपत में छिपकर कुएं पर नहाती औरतों को देखा करते थे।’

प्रकाश ने हैरत से कहा, अगर यह मजाक नहीं है तो यह बताइए कि अगर वेश्याओं ने धंधे का ऐसा कोई नया तरीका अपना लिया, जिसमें सड़क पर कोई दिखे ही नहीं तो क्या होगा? जहां तक मनोविज्ञान की बात है तो बहुत पहले मकानों की दीवारों पर पेशाब करने वालों के बारे में भी लोग यही सोचते थे लेकिन क्या नतीजा निकला।

निहलानी ने तीसरा पेग खत्म कर लंबी हुंकार भरी, साईं तभी तो असली होना शुरू होगा। दस साल में हमारा दूरबीन कल्चर आ चुका होगा तब इंटरटेनमेंट कंपनियां अपनी लड़कियों को लाकर तुम्हारे मड़ुंवाडीह में बसा देंगी। उनकी छतों पर ओपेन एयर बार, कैबरे, स्विंमिंग पूल, सन बाथ स्टैंड, जाकुजी, साउना और तरह-तरह के खेल होंगे। लोग उन्हें देखने के लिए आएंगे। वेश्याएं इन स्मार्ट और मालदार लड़कियों वाली कंपनियों के आगे पिट जाएंगी। ये कंपनियां उनसे पूरा इलाका ही खरीदकर उसे एशिया क्या, दुनिया के सबसे बड़े ओपन एयर पीप-शो वाले इंटरटेमेंट जोन में बदल देंगी। बनारस में विदेशियों की भारी आमद को ध्यान में रखते हुए यह योजना तैयार की जा रही है लेकिन अभी पाइपलाइन में ही है। प्रकाश हैरत से नशे से रतनार, आत्मविश्वास से दमकती आंखों वाली मैहर की देवी जैसी उस मूर्ति को देखता ही रह गया।

निहालानी के सोने का समय हो चुका था। ले-आउट प्लान की फोटो कापी, योजना का ब्रोशर और कुछ तस्वीरें प्रकाश चला तो अंतरात्मा ने प्लेट से एक मुट्ठी काजू उठाकर पैंट की जेब में डाल लिया। जनसंपर्क अधिकारी ने बाहर छोड़ते समय सभी को निधि कंस्ट्रक्शन कंपनी का एक मोमेंटो, कंपनी के होलोग्राम वाली एक घड़ी, दो हजार के गिफ्ट बाउचर उपहार में दिए। अंतरात्मा को यह कहते हुए, काजू का दो किलो एक पैकेट दिया कि अपने दोस्तों की पसंद का हम खास ख्याल रखते हैं। अंतरात्मा ने बच्चे की तरह उसे गोद में उठा लिया। रास्ते में हवा लगी तो वह हिचकी लेते हुए बुदबुदाने लगे, बहुत दुर्दिन देखा दादा, बहुत दुर्दिन देखा।

वह बड़बड़ा रहे थे, सब कोई भगवान से मनाओ कि ये साला मुरल्टी का पुल न बने, नहीं तो हमारा परिवार बर्बाद हो जाएगा। बस्ती वाला मकान तो वैसे ही हाथ से निकल गया है। आशा बंधी थी कि कम्पनी खरीद लेती तो कुछ रोटी-पानी का डौल बैठ जाएगा। हमारी तो बारह सौ की रिपोर्टरी करते किसी तरह कट गई पांच-पांच बच्चे हैं, पुल बन गया तो साले कहां जाएंगे। प्रकाश ने उन्हें घर छोड़ा तब सिसक रहे थे, विश्वनाथ बाबा से मनाओ कि मुरल्टी का पुल न बने दादा।

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