सफरनामा

03 अक्टूबर, 2010

क्यूं मारा पिटरूल

टनटनटन घंटा बोला,
अपने बच्चे के मुंह से कल एक अजीब सी कविता सुनी। पता नहीं कहां से सीख कर आया होगा। मेरी नजर में आई यह पहली बाल कविता है जिसमें स्कूल बच्चों के साथ है। वह अपना अस्तित्व बच्चों के पिटने और भाग जाने से नाराज हो कर विसर्जित कर देता है। अपने देश में उजाड़, ढहते, भांय-भाय करते भुतहे प्राइमरी स्कूलों की कमीं नहीं है और यह कविता उन सबके ऊपर शाम के सूने धुंधलके में मंडराती जान पड़ती है। क्या पता किसी ड्राप आउट बच्चे ने जोड़ी हो, अपने इस्कूल इतनी आशा....शायद किसी और के बस की बात नहीं है। आप खुद देखिए।

टन-टन-टन-टन घंटा बोला
बच्चे गए स्कूल
मास्टरजी ने सवाल पूछा
बच्चे गए भूल
मास्टरजी को गुस्सा आया
मार दिया पिटरूल
बच्चों को भी गुस्सा आया
छोड़ दिया स्कूल
स्कूल को भी गुस्सा आया
टूट गया स्कूल।

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