सफरनामा

08 अक्टूबर, 2010

सांसों के आगे सहम जाती है बंदूक

नवस्वामी ज्योतिष और नवसाध्वी देवी


सान फ्रांसिस्को पुलिस की नारको सेल का अफसर स्तान टाउन्सले हाइत ऐशबरी जिले की एक इमारत की अंधेरी सीढ़ियों पर एक ड्रग डीलर का पीछा करते भागा जा रहा है। ड्रग डीलर के पास असलहा है अद्धी (नाल कटी बंदूक)। सीढ़िया खत्म हुईं, अपराधी गलियारे के अंतिम छोर तक गया। वह फंस चुका है, बौखलाया हुआ है और अब बीस साल की जेल से बचने के लिए अद्धी का इस्तेमाल ही आखिरी विकल्प है। तो यही सही, वह अद्धी टाउन्सले के सीने पर तान देता है।

इस ख्याल से सहम कर कि क्षण भर में किस्सा तमाम हो सकता है, स्तान ने डीलर की आंखों में देखा। मैं बस इतना सोच पाया कि मुझे उसकी आंखों से आंखे नहीं हटानी हैं, स्तान ने उस लमहे को याद करते हुए बाद में बताया, "तो उसकी आंखों में देखते हुए मैने जता दिया कि मेरा इरादा उसे नुकसान पहुंचाने का नहीं है।" पुलिस ट्रेनिंग के दौरान मैने सीखा था कि शांत, गहरी सांस से दिमाग नियंत्रित होने लगता है सो मैने सायास कुछ गहरी सांसे भरी। काफी राहत मिली। शांति और समझदारी उस तक संप्रेषित करते हुए फिर मैने धीरे से अपना हाथ उठाया, हथेलियों को ऊपर किया।

उसने अपनी बंदूक झुका दी और फर्श पर ढह गया।

स्तान (बदला हुआ नाम) परमहंस योगानंद का शिष्य है। हममे से कुछ ने बंदूकों की नालों के सामने भी अपने योग के संतुलन की परीक्षा की है। पेशे अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन हममें से हर एक ने किसी कदर सांस, दिमाग और भावनाओं के बीच के संबंध को महसूस किया है।

आतंरिक उर्जा का पता देती है सांस
हम गुस्से में होते हैं तो सांस लेने में प्रयास करना पड़ता है और यह उखड़ने लगती है। डर में हम उथली और तेज सांस लेते हैं, कभी रूक भी जाती है। दोनों परिस्थितियों में सांसों से हमारी उर्जा या प्राण की आंतरिक हालत का पता चलता है।

योगियों के लिए प्राण शब्द एक ही मूल उर्जा की तीन अलग-अलग अभिव्यक्तियां हैं। सबसे बाहरी रूप में यह सांस है। जरा भीतर यह हमारे शरीर की जीवन उर्जा बन जाती है। ...और सबसे भीतर यह सूक्ष्म, बुद्धिमत्तापूर्ण उर्जा है जो सारी सृष्टि में व्याप्त है। योग के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इनमें से किसी एक को नियंत्रित करने से हम दूसरी को भी नियंत्रित करने लगते हैं।

योग के मुताबिक अध्यात्मिकता के विकास के केंद्र में उर्जा का नियंत्रण है। परमहंस योगानन्द ने प्राणों के प्रवाह को शरीर में महसूस करना, उन पर नियंत्रण और इच्छानुसार शरीर को उर्जा से भरना सिखाने के लिए "एनर्जाइजेशन कसरत" की ईजाद की थी। स्वामी क्रियानंद ने योगमुद्राओं के बारे में लिखा है कि वे कैसे प्राण को तीन बुनियादी रूपों में- उसके मुक्त प्रवाह के रास्ते खोल कर, उसे गतिमान करके और उसे मेरूदंड में ऊपर उठाकर प्रभावित करती हैं। प्राण उर्जा के नियमन के जरिए योगमुद्राएं दिमाग और भावनाओं पर बेहतर नियंत्रण का जरिया बन जाती हैं।

जो महज जीवन उर्जा को नियंत्रित कर ले जाते हैं उन्हें भावनात्मक स्थिरता, गहरी शांति और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है। लेकिन कुछ जो सूक्ष्म उर्जा की हलचल अपने शरीर में महसूस कर पाते हैं, वे ब्रह्मांड की सूक्ष्मतर उर्जाओं की थाह भी पाने लगते हैं। तो योग का अभ्यास सांसों पर नियंत्रण से प्रारंभ होता है। अगर हम प्राणों को अपने शरीर में हर तरफ चला सकते हैं तो हम उन्हें नियंत्रित भी कर सकते हैं। योग में सांस लेने की तकनीकों के जरिए यही तो किया जाता है।
(यह राइट अप पचीस साल पहले इन दोनों योगियों ने संयुक्त रूप से योगा जर्नल में लिखा था जो संभवतः आगे भी हारमोनियम पर जारी रहेगा)

1 टिप्पणी:

  1. संभवतः आगे भी भी नहीं, बल्कि जरूर कहिये जनाब,

    शुरुआत बेहद शानदार दी आपने लगा की कोई फ़िल्मी स्क्रिप्ट हाथ लगी हो... पूरा लेख अच्छा है सर जी, आंचलिक भाषा पर भी उतनी ही पकड़ ! कमाल है !!!

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